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________________ पुरालेखीय एवं मुद्राशास्त्रीय स्रोत [भाग 8 कलचुरि शासकों और होयसल राजाओं के शासनकाल में जैन धर्मराज धर्म के रूप में रहा। इसी तरह पून्नाट, सांतर, प्रारंभिक चंगाल्व, कोंगालव और पालूप के छोटे राज्यों के विषय में भी वहाँ के अभिलेखों से यही सिद्ध होता है। कम से कम पाँचवीं शती से इस धर्म के अनुयायियों ने अपने मत के प्रचार के लिए कला का माध्यम अपनाना प्रारंभ किया। इसकी पुष्टि इससे होती है कि प्रारंभिक कदंब राजाओं ने कांस्य-पट्टियों पर उत्कीर्ण ऐसी तालिकाएँ प्रसारित की जिनपर मंदिरों आदि जैन संस्थाओं के लिए दिये गये दान की प्रविष्टि की जाती थी। कदंब मृगेशवर्मन् (लगभग पाँचवीं शती) के राज्यकाल के आठवें वर्ष में प्रसारित एक तिथ्यंकित कांस्य-पट्टी-तालिका में प्रविष्टि है कि राजा ने अपने पिता की स्मृति में एक जैन मंदिर का निर्माण कराया । द्रविड शैली में प्रारंभ में ही एक संदर मंदिर के निर्माण का श्रेय इस राज्य के जैनों को प्राप्त होता है । यह ऐहोल का मेगटीमंदिर है। इस मंदिर में चालुक्य राजा पुलकेशी-द्वितीय का सन् ६३४-३५ का (चित्र ३०३) एक तिथ्यंकित अभिलेख है। इस अभिलेख का रचनाकार रविकीर्ति था और उसी ने इस मंदिर के निर्माण की व्यवस्था करायी थी। राष्ट्रकूटों के शासनकाल में अनेक जैन स्मारकों का निर्माण हुआ, यद्यपि अभिलेख उनमें से कुछ में ही हैं। पश्चिमी गंग शासकों ने कुछ महत्त्वपूर्ण जैन कृतियों का निर्माण कराया। एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि श्रीपुरुष ने अपने समय तक बन चुके कुछ मंदिरों के लिए दान किया था । श्रवणबेलगोल की गोम्मटेश्वर-मूर्ति पर चार भिन्न-भिन्न लिपियों में एक शीर्षक (चित्र ३०४ ख) उत्कीर्ण है। उसी स्थान पर कुछ और मंदिरों आदि में अभिलेख हैं। कर्नाटक के इतिहास में होयसल बंश का राज्यकाल स्थापत्य की उत्कृष्ट कृतियों के लिए प्रशंसनीय है। ये मंदिर अधिकतर ब्राह्मण देवताओं को समर्पित हैं, फिर भी इस काल के जैन मंदिर भी कला के आकर्षक उदाहरण हैं। उनमें से धारवाड़ जिले में गडग के पास लक्कूण्डी (प्राचीन लोक्कीगुण्डी) का जैन मंदिर भी एक है। यह मंदिर भी द्रविड शैली का है और उसमें शक संवत १०६४ (११७२ ई०) का अभिलेख है। 1 राइस (बी एल). मैसूर एण्ड कुर्ग फ्रॉम इंस्क्रिप्शंस. 1909. लंदन. पृ 203. 2 इण्डियन एंटिक्वेरी, 6. 1877. 4 1 तथा परवर्ती. 3 [देखिए प्रथम भाग में अध्याय 18 --संपादक.] 4 एपिग्राफिया इण्डिका. 6. 1900-1901. पृ 1 तथा परवर्ती. 5 राइस, पूर्वोक्त, पृ 39. 6 गाइड टू श्रवणबेलगोला, पुरातत्त्व विभाग, 1957. मैसूर. 7 कज़िन्स (एच). चालुक्यन् प्राकिटेक्चर, प्रॉक्यॉलॉजिकल सर्वे प्रॉफ इण्डिया, न्यू इंपीरियल सीरिज. 1926. कलकत्ता. 477 तथा परवर्ती. 468 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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