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अध्याय 33 ]
अभिलेखीय सामग्री - तिरुच्चिरापल्ली जिले में1 सित्तन्नवासल की एक गुफा की दायीं ओर की एक शिला पर उत्कीर्ण पाण्ड्य राजा श्रीमार श्रीवल्लभ (नौवीं शती) के काल के अभिलेख में वृत्तांत है कि इस गुफा में नया मुख-मण्डप बनाया गया, उसके भीतरी भाग का नवीनीकरण किया गया और उस चित्रकारी पर कदाचित् एक लेप और किया गया जिसे तकनीक, आकार-प्रकार, रंग-योजना और मनुष्यों, पशुओं तथा वनस्पति के चित्रांकन की दृष्टि से कला का एक उल्लेखनीय निदर्शन माना जाता है।2
यक्षी, यक्ष आदि के जैन मूर्ति-विज्ञान में सहचर देवताओं के रूप में प्रवेश का परिणाम यह हुआ कि तीर्थंकरों की अपेक्षा उनकी पूजा को प्रधानता मिलने में जो बाधा थी वह भी समाप्त हो गयी । इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण कन्याकुमारी जिले के विलवंगोडे तालुक के चित्राल नामक ग्राम में तिरुच्चारणत्तमले स्थान पर निर्मित भगवती-मंदिर है। ऐसा अभिलेख एक ही है जिसमें किसी देवी का उल्लेख हुआ है, वह प्राय राजा विक्रमादित्य वरगुण (नौवीं शती के अंतिम चरण)4 के शासनकाल का है। उसमें भटारि की पूजा के लिए किये गये दान का वृत्तांत है जिसमें निश्चित रूप से यह उल्लेख है कि पार्श्वनाथ के पार्श्व में पद्यावती देवी की और एक अन्य तीर्थंकर के पार्श्व में अंबिका (सिंह-सहित) की मूर्ति बनायी गयो । इसी प्रकार की इससे भी अधिक प्रभावशाली एक घटना नागरकोयिल के विषय में है जहाँ मुल जैन मंदिर की तीर्थंकर-मूर्तियों के नागफण के प्रतीक को केवल इसीलिए प्रमुखता दी गयी जिससे उसे अनंताड्वार के रूप में हिंदू देव-प्रतीकों में समाहित किया जा सके । तथापि ऐसे उदाहरण हैं कि कांचीपुरम् और तिरुमल के तिरुप्परुत्तिक्कूण्रम नामक मंदिर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रहे।
पालघाट जिले के गोदापुरम् (अलतुर) में महावीर और पार्श्वनाथ की एक द्विमूर्तिका पर तमिल भाषा में बटेजुत्तु लिपि में अंकित लगभग दसवीं शती के एक अभिलेख में एक विशाल चैत्यवास और मंदिर के अस्तित्व का संकेत है, कदाचित् उसी मंदिर में यह द्विमूर्तिका थी।
कर्नाटक प्रदेश को जैन धर्म का दूसरा मूलस्थान कहा जा सकता है। इस तथ्य की पुष्टि न केवल श्रवणबेलगोला, मूडबिदुरे (मूडबिद्री), कार्कल और भटकल जैसे अनेक महत्त्वपूर्ण जैन केंद्रों से होती है जहाँ कला की अनेक मनोरम कृतियाँ विद्यमान हैं, वरन् इस राज्य के विभिन्न भागों में उत्कीर्ण किये गये अभिलेखों से भी होती है। गंग राजाओं, कुछ कदंब शासकों, राष्ट्र कट और
1 मैनुअल प्रॉफ पुदुक्कोटै स्टेट. 2, 2.4 1093 तथा परवर्ती. 2 [द्वितीय भाग में अध्याय 30 देखिए --संपादक.] 3 [द्वितीय भाग में अध्याय 19 देखिए -संपादक.] 4 त्रावणकोर प्रायॉलॉजिकल सीरिज. 1 1 193 तथा परवर्ती. 5 वही, 6. पृ 159 तथा परवर्ती. 6 जर्नल ऑफ़ इण्डियन हिस्ट्री, 44. 1966. पृ 537-43. /जर्नल प्रॉफ़ केरल स्टडीज, 1, क्रमांक 1,
1973. पृ 27-32.
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