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________________ पुरालेखीय एवं मुद्राशास्त्रीय स्रोत [ भाग 8 नौवीं शती में जैन आचार्य अज्जनंदी के प्रकाश में आने पर जैनों की गतिविधियों में समूचे तमिलनाडु में एक सुखद क्रांति हुई। उन्होंने इस क्षेत्र को इस छोर से उस छोर तक नाप डाला; इसकी पुष्टि उन अभिलेखों से होती है जिनके अनुसार उन्होंने करूंगलक्कुडि (जिला मदुरै), तिरुवयिरै (मदुरै), अनाइमलै (मदुरै), कूरण्डि (रामनाथपुरम) अज़गरमल (मदुरै) और बल्लिमले (उत्तर अर्काट) में अनेक तीर्थकर-मूर्तियों का निर्माण कराया ।। वल्लिमलै की शैलोत्कीर्ण गुफा में उत्कीर्ण राचमल्ल (८२० ई०) के शासनकाल के पश्चिमी गंग शासकों के अभिलेखों में वृत्तांत है कि अज्जनंदी ने अपने प्राचार्यों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण करायीं। ये उत्तम कलासंपन्न मूर्तियाँ इन अभिलेखों में उल्लिखित शिला पर ही उत्कीर्ण हैं। इन गुफाओं में भित्ति-चित्र भी हैं जो या तो इन्हीं अभिलेखों के समकालीन हैं या दसवीं शती के माने जा सकते हैं। शिल्पांकनों में तीर्थंकर-मूर्तियाँ यद्यपि शांत मुद्रा में अलंकरण के बिना ही उत्कीर्ण की गयी हैं, (उत्तर अर्काट जिले के पोलूर तालुक में ओदलवदि के अर्हत्-मंदिर में स्थापित तीर्थंकर-मूर्ति को अणियाद अलगियार नाम दिया गया है), किन्तु यक्षों, यक्षियों और चमरधारियों की मूर्तियाँ अलंकृत हैं। क्योंकि इन सब पर अभिलेख भी उत्कीर्ण हैं अतः मूर्तियों के विविध अलंकरणों के आधार पर मूर्तिकला के विकास का अध्ययन सरलता से किया जा सकता है । इस अध्ययन से उन कांस्य-मूर्तियों पर भी प्रकाश पड़ सकता है जो विभिन्न ग्रामों के जैन मंदिरों में रखी हैं। कांस्य-मूर्तियों में से भी कुछ पर अभिलेख हैं; उदाहरण के लिए दक्षिण अर्काट जिले के तिदिवनम् तालुक के किदंगिल से प्राप्त और अब शासकीय संग्रहालय, मद्रास में संगृहीत एक महावीर-मूर्ति पर तमिल लिपि में लगभग बारहवीं शती का अभिलेख है। एक ही पट्ट पर अंकित या अलग-अलग निर्मित चौबीसों तीर्थंकरों की मूर्तियों की दाताओं द्वारा स्थापना का वृत्तांत ग्रंथलिपि में उत्कीर्ण उस अभिलेख में है जिसमें दाता वासूदेव-सिद्धांत-भटारर को 'चविंशति-स्थापक' की उपाधि दी गयी है। यह अभिलेख चिंगलपट जिले में मधरांतकम तालुक के वेरल्लूर ग्राम की नागमलै नामक पहाड़ी की एक चट्टान पर उत्कीर्ण एक ऐसी देवकोष्ठिका के पास अंकित है जिसमें जिनालय की लघु आकृति के मध्य सुपार्श्वनाथ की मूर्ति उत्कीर्ण है। तीर्थकरों के नामों का उल्लेख कम ही अभिलेखों में हुआ है, उदाहरणार्थ तिरुप्परुत्तिक्कुरम् के अभिलेख में वर्धमान का, कीज़सातमंगलम् के अभिलेख में विमल-श्री-आर्य-तीर्थ (विमलनाथ) का, ऐबरमल और पोन्नर के अभिलेखों में पार्श्वनाथ का, करण्डै के अभिलेख में कुंथुनाथ का और पोन्नूर के एक अभिलेख में आदीश्वर का । 1 एनुअल रिपोर्ट प्रॉन साउथ इण्डियन एपिग्राफी, 1911, क्रमांक 562./साउथ इण्डियन इंस्क्रिप्शंस, 14 क्रमांक 22,107.19./वही 99-106./एनुअल रिपोर्ट प्रॉन साउथ इण्डियन एपिग्राफी, 1910. क्रमांक 61-69./एनुअल रिपोर्ट प्रॉन इण्डियन एपिग्राफी, 1954-55, क्रमांक 396./एपिग्राफिया इण्डिका, 4, पृ 140 तथा परवर्ती. 2 एनुअल रिपोर्ट प्रॉन साउथ इण्डियन एपिग्राफी, 1895. क्रमांक 10. 3 एनुअल रिपोर्ट प्रॉन इण्डियन एपिग्राफी, 1973-74.वेरलूर के अतर्गत (प्रकाशनाधीन). 466 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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