SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय 33 ] अभिलेखीय सामग्री अभिलेख से स्पष्ट होता है कि वह तीर्थकर संभवनाथ की है। मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर उपलब्ध अनेक उत्तर-मध्यकालीन मूर्तियों के पादपीठों पर तिथि-सहित अभिलेख उत्कीर्ण हैं। इन अभिलेखों में विभिन्न तीर्थंकरों की मूर्तियों की प्रतिष्ठा के वृत्तांत होते हैं। उदाहरण के लिए, शिवपुरी जिले के गूदर में प्राप्त विक्रम संवत् १२०६ (११४६ ई.) के एक अभिलेख में शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ की मूर्तियों की प्रतिष्ठा का उल्लेख है। मोरेना जिले के धनचा में ऐसी अनेक मूर्तियाँ हैं जिनके पादपीठ पर उनकी प्रतिष्ठा की तिथि अंकित है, जैसे—विक्रम संवत् १३९० (१३३३ ई०) चैत्र शुक्ल १५, गुरुवार । ग्वालियर के उत्तरकालीन तोमरवंश के राज्यकाल में जैन धर्म का प्रभाव बढ़ा । इसका प्रमाण ग्वालियर की मूर्तियों के पादपीठों पर अंकित उन अभिलेखों से मिलता है जिनमें से एक राजा डूंगरसिंह के शासनकाल में विक्रम संवत् १५१० (१४५३ ई०)३ में और कुछ कीर्तिसिंह के शासनकाल में विक्रम संवत् १५२५ (१४६८ ई०) आदि में उत्कीर्ण किये गये। कांगड़ा जिले के कीरग्राम के शिव-वैद्यनाथ-मंदिर में प्राप्त एक खण्डित जैन मूर्ति के पादपीठ पर उत्कीर्ण एक अभिलेख में विक्रम संवत् १२६६ (१२४० ई.) की तिथि अंकित है। और उसमें लिखा है कि मूलबिंब के रूप में यह प्रतिमा कीरग्राम में ही महावीर-मंदिर में प्रतिष्ठित की गयी। यह पादपीठ अब एक शिव-मंदिर में है, अतः हो सकता है कि यह अपने मूल मंदिर से लाया गया हो जो अब नष्ट हो चुका हो । गुजरात और राजस्थान भी जैन धर्म के महान् केंद्र थे, इस क्षेत्र में जैन कृतियों के अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं। स्वस्तिक, भद्रासन, मीन-युगल' आदि विशेष जैन प्रतीकों से अंकित एक जैन गुफा में उत्कीर्ण रुद्रसिंह के द्वितीय शताब्दी के जूनागढ़ अभिलेख से और ऋषभ, पार्श्वनाथ, महावीर आदि तीर्थंकरों की मूर्तियों सहित ढांक की सातवीं शती की जैन गुफाओं से संकेत मिलता है कि गजरात-क्षेत्र में जैन धर्म पहले से प्रचलित था। प्रतीहार राजा कुक्कूक ने विक्रम संवत ६१८ (८६१ ई०) में जोधपुर के समीप घटियाला में एक जैन मंदिर बनवाया था। तथापि मुख्यतः 1 द्विवेदी (एच वी). ग्वालियर राज्य के अभिलेख. 1947. ग्वालियर. क्रमांक 72. 2 वही, क्रमांक 196-210. 3 वही, पृ 276-277. 4 वही, पृ. 291-302. 5 एपिग्राफिया इण्डिका, 1. पृ 97 तथा परवर्ती, 119. 6 [देखिए प्रथम भाग में अध्याय 8-संपादक.] 7 दि एज ऑफ़ इंपीरियल यूनिटी, संपादक-मजूमदार रमेशचंद्र और पुसालकर (ए डी), 1960. बंबई, पृ418 में घाटगी (ए एम). 8 घाटगी, वही, [देखिए प्रथम भाग में अध्याय 13. -संपादक.] 9 जर्नल माफ़ द रॉयल एशियाटिक सोसायटी, 1895. पृ 516. 459 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy