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पुरालेखीय एवं मुद्राशास्त्रीय स्रोत
[भाग 8 की कदाचित् सर्वप्रथम मूर्ति है। । स्तूप के समीपवर्ती क्षेत्र में तीर्थंकरों और विशेषत: वर्धमान की अनेक मूर्तियाँ प्राप्त हुई जिनपर विभिन्न शक संवतों के अभिलेख उत्कीर्ण हैं । मूर्ति-विज्ञान की दृष्टि से उन सब में एकरूपता है और सबके पादपीठ पर धर्मचक्र का अंकन है। इन अवशेषों में एक वर्ग आयाग-पटों अर्थात् पूजा के लिए प्रयोग में आने वाले शिलापटों का है, इनमें भी कुछ पर अभिलेख हैं।
गुप्त काल में जैन धर्म को भारत के उत्तरी, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी भागों में बहुत प्रोत्साहन नहीं मिला । तो भी इन क्षेत्रों की जनता में उसके अनुयायी निरंतर होते रहे। विदिशा के समीप दुर्जनपुर में कुछ समय पूर्व प्राप्त तीर्थंकरों की तीन पाषाण-मूर्तियों पर उत्कीर्ण अभिलेखों में लिखा है कि उनका निर्माण महाराजाधिराज रामगुप्त ने कराया था जिससे न केवल इस आरंभिक गुप्त-शासक की ऐतिहासिकता संपुष्ट होती है, प्रत्युत यह भी सिद्ध होता है कि इस क्षेत्र में इस धर्म को राजकीय संरक्षण प्राप्त था। चंद्रप्रभ, पुष्पदंत और पद्यप्रभ की ये तीर्थकर-मूर्तियाँ गुप्त कला की रूढ़ शैली में निर्मित हैं और चौथी शती के अंत में प्रचलित इस कला के रूप का ये अच्छा प्रतिनिधित्व करती हैं।
इस युग की जैन कला-कृतियों पर प्रकाश डालने वाला एक अन्य महत्त्वपूर्ण अभिलेख विदिशा के समीप उदयगिरि पहाड़ी पर गुफा-२० में उत्कीर्ण है। उसमें कुमारगुप्त के शासनकाल का गुप्त संवत् १०६ (४२५-२६ ई०)अंकित है और लिखा है कि उस गुफा के अग्र-भाग पर पार्श्वनाथ की फणावलि-मण्डित मूर्ति (जो अब अप्राप्य है) स्थापित की गयी (जिनवर-पार्श्व-संज्ञिकां जिनाकृतिम्) । उक्त शासनकाल में ही गुप्त संवत् ११३ (?) से अंकित एक और अभिलेख एक जैन मूर्ति पर उत्कीर्ण है जो मथुरा से प्राप्त हुई थी और अब लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित है । गोरखपुर जिले के कहाऊँ नामक स्थान पर एक भूरे बलुआ पाषाण का स्तंभ मिला है जिसपर पाँच तीर्थंकरों, कदाचित आदिनाथ, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर की सुंदर मूर्तियाँ हैं। उसपर स्कंदगुप्त के शासनकाल का गुप्त संवत् १४१ (४६०-६१ ई०) का अभिलेख है। उसमें लिखा है कि किसी मद्र ने आदि-कर्ताओं या तीर्थंकरों की पाँच पाषाण-मूर्तियाँ स्थापित करायी जो स्पष्ट रूप से वे ही हैं जो इस स्तंभ पर अंकित पाँच देवकोष्ठिकानों में उत्कीर्ण हैं। राजशाही जिला (बांग्ला देश) के
1 ल्यूडर्स, वही, क्रमांक 54, [देखिए प्रथम भाग में पृ 70, चित्र 20. --संपादक.] 2 वही, क्रमांक 16, 17, 18, 28 और 74. 3 [देखिए प्रथम भाग में चित्र 1, 2 ब, 14, 15 और 16.--संपादक.] 4 गइ (जी एस) एपिग्राफिया इण्डिका, 28,भाग 1, जनवरी, 1969, 1 46-49. 5 [देखिए प्रथम भाग में अध्याय 12. --संपादक.] 6 फ्लीट (जे एफ़) इंस्क्रिप्शंस ऑफ दि अर्ली गुप्त किंग्ज, कार्पस इंस्क्रिप्शनम् इण्डिकेरम् 3, 1888, कलकत्ता. पृ258 7 भण्डारकर, (देवदत्त रामकृष्ण) लिस्ट प्रॉफ नॉर्थ इण्डियन इंस्क्रिप्शंस, क्रमांक 1268. 8 फ्लीट, पूर्वोक्त, पृ 66-67.
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