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अध्याय 33
अभिलेखीय सामग्री
जैन धर्म के उद्भव-क्षेत्र पूर्वी भारत में इस धर्म के इतिहास में प्राचीनतम उत्कीर्ण अभिलेख भुवनेश्वर के समीप उदयगिरि पहाड़ी पर हाथीगुंफा का गुफा-अभिलेख है। जिसमें अन्य वृत्तांतों के साथ यह भी लिखा है कि चेदिराज खारवेल (द्वितीय या प्रथम शती ई० पू०) कलिंग-तीर्थकर की वह मूर्ति अपनी राजधानी में पुनः ले आया जिसे नंदराज मगध ले गया था। उसी पहाड़ी पर उत्कीर्ण अन्य अभिलेखों में वृत्तांत है कि खारवेल के परिवार के शासकीय और राजकीय स्तर के व्यक्तियों ने उस पहाड़ी पर जैन मुनियों के आवास के लिए गुफाएँ बनवायीं। इलाहाबाद जिले के पभोसा में प्राप्त उसी काल के दो अभिलेखों में कहा गया है कि काश्यपीय अरहंतों (अर्थात् वे जैन साधु जो काश्यप या वर्धमान के अनुयायी थे) के आवास के लिए आषाढ सेन ने एक गुफा बनवायी।
ईसवी सन् के प्रारंभ में जैन धर्म का एक केंद्र उत्तर प्रदेश में मथुरा था। वास्तव में इस नगर के कंकाली-टीला नामक क्षेत्र में मूलतः अनेक जैन भवन थे जिनमें एक स्तूप भी था। इस क्षेत्र में प्राप्त अनेक मूर्तियों और भवनों के शिलाखण्डों पर अभिलेख उत्कीर्ण हैं। इनमें एक महत्त्वपूर्ण आयाग-पट है, जिसपर दो नारियों से परिवृत एक महिला का अंकन है, इसपर (चित्र ३०१ क) उत्कीर्ण है कि महाक्षत्रप शोडास के बहत्तरवें वर्ष में किसी आमोहिनी ने इस आयाग-पट का दान किया । यदि यह बहत्तरवाँ वर्ष विक्रम संवत् माना जाये तो इस आयाग-पट का काल १५ ई० माना जायेगा। आयाग-पट पर अंकित महिला वर्धमान तीर्थंकर की माता रानी त्रिशला मानी गयी है।' शक संवत् ५४ अर्थात् १३२ ई० के अभिलेख-सहित एक और सुंदर मूर्ति है, यह सरस्वती
। सरकार (दिनेशचंद्र) सेलेक्ट इंस्क्रिप्शंस बियरिंग मॉन इण्डियन हिस्ट्री एण्ड सिवलाइजेशन, 1. 1965. कलकत्ता.
पृ 213 तथा परवर्ती. 2 [देखिये प्रथम भाग में अध्याय 7.--संपादक.] 3 एपिग्राफिया इण्डिका, 2, 1893-94, पृ 242-243. 4 [देखिए प्रथम भाग में पृ 11, पाद टि04. --संपादक.] 5 [देखिए, प्रथम भाग में अध्याय 6-संपादक.] 6 ल्यूडर्स (एच). लिस्ट प्रॉफ़ ब्राह्मी इंस्क्रिप्शंस. 1912. क्रमांक 59. 7 अग्रवाल (वासुदेव शरण). ए शॉर्ट गाइ-बुक टु दि मॉक यॉलॉजिकल सेक्वान प्रॉफ प्रॉविसियल म्यूजियम,
लखनऊ. 1940. इलाहाबाद. पृ 5.
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