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अध्याय 32 ]
काष्ठ-शिल्प
इन संदरियों में पायल बाँधती नृत्यांगना की मूर्तियों की अपनी विशेषता है (रेखाचित्र २७) । कभीकभी कोई लघु आकृति किसी बड़ी प्राकृति के अनुकरण पर उसके पैरों के पास बनायी गयी है (चित्र २६६ क) या कहीं कोई माता अपने शिशु को भारत में प्रचलित ढंग के अनुसार गोद में लिये दिखाई गयी है (चित्र २६६ ख)। जैसा कि पहले कहा जा चुका है, अधिकतर सभी मूर्तियाँ रंगी हुई थीं और कुछ पर तो अब भी रंग के चिह्न बच रहे हैं। यद्यपि इनका निर्माण विभिन्न मण्डपों के अंगों के रूप में हुआ था तथापि ये वृत्ताकार में बनायी गयीं। उनके पृष्ठ-भाग पर वह चिक्कणता नहीं है जो इनके अग्रभाग पर लायी गयी।
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रेखाचित्र 26. गुजरात : काष्ठ-शिल्प, नारी-संगीतकार
रेखाचित्र 27. गुजरात : काष्ठ-शिल्प, पायल
बाँधती नृत्यांगना
काष्ठ-निर्मित मंदिरों के अंगों के रूप में बनायी गयीं एवं अब उनसे पृथक हो गयीं आयताकार पट्टियाँ और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि उनसे समकालीन जीवन की झाँकी मिलती है । ऐसी ही एक पट्टी पर जैन साधुओं (उनके मुंह पर मुंहपट्टी बँधी दिखाई गयी है) का विविध वस्तुएँ भेंट करते हुए ग्रमीणों द्वारा किया जाता सम्मान दिखाया गया है (चित्र ३०० क)। उस पट्टी के नीचे दायें कोण पर एक अश्वारोही इस अनुष्ठान को देखता हुआ अंकित है और बहुत से अन्य भक्त हाथ जोड़कर साधनों की भक्ति करते हुए दिखाये गये हैं। एक व्यक्ति माला धारण किये है तो
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