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________________ अध्याय 32 काष्ठ-शिल्प प्रस्तावना सर्वाधिक श्रमसाध्य और मनोज्ञ काष्ठ-शिल्प, जो काल के कराल थपेड़ों को झेल सका, वह अधिकतर गुजरात और राजस्थान में सत्रहवीं से उन्नीसवीं शती तक निर्मित हया है। काष्ठ-शिल्प की सर्वोत्तम कृतियाँ मूलत: जैन धर्म के संरक्षण में प्रस्तुत की गयीं। गुजरात और राजस्थान के शुष्क वातावरण में काष्ठ-निर्मित कृतियाँ देश के अन्य भागों की अपेक्षा अधिक दीर्घकाल तक सुरक्षित रहती हैं, इसीलिए इन क्षेत्रों में काष्ठ के व्यापक उपयोग को प्रोत्साहन मिला। काष्ठ के प्रयोग का एक कारण उसका वह गुण भी है जिससे वह उष्णता को सहन कर सकता है। इसके अतिरिक्त, इन क्षेत्रों के समीप ही मध्य प्रदेश के वनों में लकड़ी का उत्पादन बहुत होता है, जो यहाँ सरलता से लायी जा सकती है। कलाकार-तक्षक भली-भाँति जानता था कि मूर्तियों, जालियों, छिद्रित जालियों तथा अन्य सूक्ष्म अलंकरणों का उत्कीर्णन और फिर उनपर पॉलिश आदि पाषाण आदि की अपेक्षा काष्ठ पर कम समय में किया जा सकता है। गुजरात और राजस्थान के घरों में जो काष्ठ के छज्जे बनते थे उनका अपना आकर्षण तो था ही, उनमें से वायु का प्रवेश भी पर्याप्त हो सकता था। काष्ठ के प्रयोग का एक लाभ यह भी था कि उससे भवन का भार कम रहता जबकि उसकी मजबूती में कोई अंतर नहीं पड़ता । उससे यह अतिरिक्त सुविधा भी रहती कि उसमें बड़े-बड़े अलंकरणों का उत्कीर्णन इसलिए सहज हो पाता कि कई काष्ठ-फलकों को जोड़कर बड़ा कर लिया जाता, जो ईंट पाषाण से संभव नहीं होता। आवासीय स्थापत्य एवं उपस्कर आवासीय स्थापत्य की दृष्टि से सामान्यतः एक जैन घर में द्वार के सरदल पर या गवाक्ष की चौखट पर तीर्थंकर-मूर्ति या मंगल-चिह्न (चौदह स्वप्न आदि) उत्कीर्ण किये जाते हैं ताकि घर में मांगलिकता का संचार हो । चौखट पर उत्कीर्ण किये जाने वाले अन्य अलंकरण हैं--अष्ट-मंगलों का आलेखन, पुष्पों और लताओं की पट्टियाँ, द्वारपाल आदि। जैन घरों में साधारणतः काष्ठ-निर्मित 1 गोयत्ज (एच). दि मार्ट एण्ड प्राकिटेक्चर प्रॉफ बीकानेर स्टेट. ऑक्सफोर्ड. 1950. पृ. 150, रेखाचित्र 24. 440 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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