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अध्याय 29 ]
बक्षिणापथ वर्ग विशेष रूप से उल्लेखनीय है, उसके अंतर्गत मुडबिद्री के आसपास निर्मित जैन गुरुनों की निषीधिकाएँ आती हैं। इन स्मारकों की रचना पगोडा के समान सूच्याकार है, इनमें एक-के-ऊपर-एक कई तल होते हैं और ऊपर का तल नीचे के तल से छोटा होता जाता है । प्रत्येक तल की सीमा उसका बाहर निकला उत्तीर बनाता है और सबसे ऊपर एक स्तूपी होती है । चौथे वर्ग में वे मंदिर पाते हैं जिनके गर्भगह पर एक अतिरिक्त तल होता है। इसके उदाहरण हैं दक्षिण कनारा जिले के वेणर की शांतीश्वर-बस्ती और वेमूलवाड से प्राप्त कुछ अधिक प्राचीन एक ऐसी लघु पूजा-वस्तु जो एक जैन मंदिर की अनुकृति पर बनी है। चौमुखी-बस्ती (चतुर्मुख-बस्ती) नामक एक और भी विधा है, जिसका एक सर्वोत्तम उदाहरण कार्कल में है । यह द्रष्टव्य है कि अधिकांश जैन मंदिर उत्तराभिमुख हैं। जिनका मुख अन्य दिशाओं में है उनकी संख्या बहुत कम है। उत्तराभिमुख होने की इस विशेषता से प्राचीन तमिल साहित्य में उल्लिखित 'बडक्किरुत्तल' (अर्थात् उत्तराभिमुख आसीन) नामक तपस्या का स्मरण हो पाता है जिसे साध पुरुष या राजपरिवार के सदस्य सांसारिक बंधनों से मक्ति-लाभ के लिए धारण किया करते थे।
विजयनगर के स्मारक
विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी के जैन मंदिरों में गणिगित्ति-मंदिर (चित्र २४७) उल्लेखनीय है जिसका निर्माण हरिहर-द्वितीय के शासनकाल में बुक्क-द्वितीय के मंत्री इरुग ने १३८५ ई० में कराया था। इस मंदिर के सामने एक उत्तुंग मान-स्तंभ है जिसपर उत्कीर्ण अभिलेख में उपर्युक्त वृत्तांत है। इसके अतिरित उसमें इस मंदिर का उल्लेख कुंथु-जिननाथ-चैत्यालय के नाम से हा है। ग्रामूलचूल पाषाण से निर्मित इस उत्तराभिमुख प्रासाद में 'गर्भगह, अंतराल और अर्धमण्डप हैं और महा-मण्डप भी, जिससे एक पूर्वाभिमुख उप-गर्भगृह संलग्न है। स्तंभ प्राचीन शैली के, भारी और चतुष्कोणीय हैं। सोपानबद्ध स्तूपाकार शिखर-भाग में छह तल हैं जिनमें नीचे की अपेक्षा ऊपर का तल लघुतर होता गया है और जिनका निर्माण आड़े शिला-फलकों से हुआ है। ग्रीवा चतुष्कोणीय है और निम्न चतुष्कोणीय शिखर स्तूपी के आकार का है।'4 'सम्मुख-द्वार के पाषाण-निर्मित सरदल पर एक साधु की प्रासीन मूर्ति उत्कीर्ण है जिसके मस्तक पर त्रिछत्रावली है और दोनों ओर एक-एक चमर डुलाये जा रहे हैं। मुख-मण्डप की समतल छत पर ईंट-चूने से बनी एक अलंकृत परिधिका है जिसमें तीन बड़ी देवकुलिकाएँ हैं। उपर्युक्त सरदल की भाँति इनमें भी एक-एक साध-मूर्ति
1 ब्राउन, पूर्वोक्त, पृ 156-57, चित्र 102, रेखाचित्र 4. 2 श्रीनिवासन. (पी पार) 'एण्टिक्विटीज ऑफ तुलनाड' ट्रेजेक्शंस ऑफ द प्रायॉलॉजिकल सोसायटी ऑफ साउथ
इण्डिया, 1, 1955. पृ 783/गोपालकृष्ण मूर्ति (एस) जैन वेस्टिजेज इन आंध्र, आंध्र प्रदेश गवर्नमेण्ट
पार्क यॉलॉजिकल सीरीज, 12, रेखाचित्र 26 जी, एच. 3 श्रीनिवासन, पूर्वोक्त पृ79, रेखाचित्र 1. 4 देवकुंजारि (डी). हम्पी. 1970. नई दिल्ली. पृ. 41.
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