SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 1300 से 1800 ई० [ भाग 6 आसीन-मुद्रा में है; पर ये चूने से बनी थीं और अब इनके खण्ड-खण्ड ही बच रहे हैं। यह मंदिर सावधानी से निर्मित हुआ है, इसमें एक भी हिंदू मूर्ति नहीं है और इन खण्डहरों में यह मंदिर निश्चित ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्मारक है।'' हेमकूटम् पहाड़ी पर स्थित मंदिर-समूह साधारणत: जैन मंदिरों का ही समूह माना जाता है। इनमें अधिकतर मंदिर त्रिकुटाचल (तीन गर्भालयों-सहित) हैं और उनके शिखर-भाग उसी विशेष शैली में सोपानबद्ध सूच्याकार हैं (चित्र २४८ और २४६ क)। 'अधिकांश मंदिरों के गर्भालयों में मूर्तियां नहीं हैं । इन मंदिरों की विशेषता यही है कि इनमें तीन गर्भालय हैं--पूर्वाभिमुख, पश्चिमाभिमुख और उत्तराभिमुख ; तीनों का एक ही अर्ध-मण्डप है ; तीनों की एक मुख-चतुष्की है। भित्तियों की संरचना बड़े-बड़े आयताकार शिला-फलकों को सुंदरता से जोड़कर की गयी है और मध्य में एक प्राड़ी पट्टी अलंकरण के रूप में रखी गयी है। प्राचीन शैली के भारी चतुष्कोणीय स्तंभों से बड़े-बड़े टोडे निकले हैं। सोपानबद्ध सूच्याकार शिखर-भाग पाषाण-निर्मित है और उनका ऊपरी भाग चतुष्कोणीय स्तूपी के प्राकार का शिखर है। इन मंदिरों के गर्भालयों में मूर्तियों की अनुपस्थिति और उनके शिखर-भाग की शैली से किसी को संदेह हो सकता है कि वे वास्तव में जैन मंदिर हैं या नहीं। यों भी इन्हें मूलतः जैन सिद्ध करने का कोई आधार भी नहीं। वास्तव में, उनमें निस्संदेह बहुत-से शिव-मंदिर हैं। उनमें से कुछ शैलीगत आधार पर चौदहवीं शती के माने गये हैं। यद्यपि त्रिकूट-शैली के ये मंदिर कुछ ऐसे स्थानों पर स्थित हैं जिससे वे जैन माने जा सकते हैं, जैसे वर्धमानपुर (आधुनिक बड्डमणी) जो एक जैन केंद्र था, और आलमपुर के उत्तर में प्रगतुर जो कदाचित् उससे भी प्राचीन जैन केंद्र था। इस शैली का एक जैन मंदिर बेलगाम में भी है। उसका समय १२०५ ई० से भी पहले का माना जाता है । हम्पी में हस्तिशाला के समीप एक मंदिर हेमकूटम् के मंदिरों की ही शैली का है। उसमें गर्भगृह, अर्ध-मण्डप, महा-मण्डप और मुख-मण्डप हैं, किन्तु उसका शिखर-भाग अब बचा नहीं है। गर्भगह की भित्तियाँ लम्बे-चौडे आयताकार शिला-फलकों की संदर जडाई से बनी हैं। इसके अर्ध-मण्डप और महा-मण्डप के स्तंभ समतल, भारी घनाकार हैं, और प्राचीन शैली के हैं। यहाँ के अभिलेखों में वत्तांत है कि पार्श्वनाथ के इस मंदिर का निर्माण देवराय-द्वितीय ने १४२६ ई० में कराया था। श्रवणबेलगोला के स्मारक महान जैन केंद्र श्रवणबेलगोला के अनेक जैन मंदिरों में से कुछ का निर्माण विवेच्य काल में हुआ। ये मंदिर द्रविड़-शैली के हैं और इनके अलंकरण होयसल-शैली में निर्मित किये गये हैं। 1 लांगहर्स्ट, वही, पृ 130-32. 2 देवकुंजारि, वही, पृ. 49. .3 गोपालकृष्ण मूर्ति, वही, 50-51. चित्र 14, रेखाचित्र 39 क, ख. 4 कज़िन्स, वही, पृ 121-22, चित्र 135. 5 एपिमाफिया कर्माटिका, 2, 1923, पृ 1-32 और उनके चित्र. 374 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy