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________________ अध्याय 24 ] दक्षिणापथ और दक्षिण भारत तिरुपरुत्तिकुण्रम् के जैन मंदिरों की तिथियाँ पल्लव- काल से विजयनगर - काल तक की हैं । उदाहरण के लिए, चंद्रप्रभ-मंदिर में राजसिंह द्वारा निर्मित पल्लव मंदिरों की शैली की सभी लाक्षणिक विशेषताएँ विद्यमान हैं किन्तु क्रमिक नवीनीकरण से उसकी विन्यास - रेखा और मूल्यांकन में शोचनीय परिवर्तन हो गया है जिससे अब नवीनीकृत रूप में इस मंदिर की तिथि विजयनगर-काल की प्रतीत होने लगी है, यद्यपि उसकी विन्यास - रेखा, आकार-प्रकार और विस्तार के मूलतः पल्लव होने में कोई संदेह नहीं । 1 इसी प्रकार, त्रैलोक्यनाथ या वर्धमान मंदिर या त्रिकूट- बस्ती के नाम से प्रसिद्ध यहाँ के मंदिरों का मुख्य समूह पल्लव सिंह वर्मा ( लगभग ५५० ई०) के समय का है । इसका प्रमाण यह है कि पल्लवों के प्राचीनतम द्विभाषीय ताम्रपट्टिका - अभिलेख के अनुसार सिंहवर्मा और उसके पुत्र सिंहविष्णु से इस मंदिर को कोई दान प्राप्त हुआ था । 2 तथापि, पल्लव मंदिर का अब कोई चिह्न तक नहीं बच रहा है । यहाँ तक कि इस मंदिर के तीनों विमानों की संयोजना चोल शासक कुलोत्तुंग - प्रथम के काल (१०७०-१११८ ई०) से पूर्व की नहीं हो सकती क्योंकि इस मंदिर में प्राप्त हुए प्राचीनतम अभिलेख इसी के शासनकाल के हैं। इसके अतिरिक्त, चोल-मंदिरों का भी विजयनगर-काल में नवीनीकरण हुआ जब कि बुक्कराय तृतीय के सेनापति इरुगप्प ने संगीत - मण्डप का निर्माण कराकर इस मंदिर का संवर्धन किया । प्राकार का निर्माण भी चोल राजा राजराज तृतीय के सामंत काडर द्वारा संवर्धन के रूप में हुआ । इस सामंत को स्थानीय अभिलेखों में अलगिय पल्लवन (कोप्पेरुनजिंग ) कहा गया है । सब मिलाकर, इस मंदिर समूह का मुख्य निर्माण कार्य पल्लव, चोल और विजयनगर, तीन कालों में संपन्न हुआ 13 तमिल देश के एक महत्त्वपूर्ण जैन केंद्र तिरुमलै ( उत्तर अर्काट जिला ) के मंदिर समूह के निर्माण कार्य की कथा भी प्रायः इसी प्रकार की है। यहाँ के मंदिरों का निर्माण कार्य प्राकृतिक गुफा और प्राचीन शैलोत्कीर्ण चैत्यवासों के आसपास किया गया। इस मंदिर समूह के दो भाग हैं जिनका निर्माण कार्य राष्ट्रकूट, चोल और विजयनगर- कालों में संपन्न हुआ । विमान में चोल काल की विशेषताएँ अधिक हैं और मण्डप और गोपुर में विजयनगर-काल की । कोयंबटूर जिले के विजयमंगलम् में एक जैन मंदिर है, उसके सभी भाग समुचित अनुपात में हैं और उसका निर्माण गंग और विजयनगर- कालों में हुआ । 1 देखिए अध्याय 19. 2 'पल्लनकोइल कॉपर - प्लेट ग्राण्ट ऑॉफ पल्लव सिंहवर्मन्', ट्रैक्शंस प्रॉफ दि मार्क यॉलॉजिकल सोसाइटी ऑफ साउथ इण्डिया, 1958-59. 3 इन सभी मंदिरों के विस्तृत विवेचन के लिए देखिए रामचंद्रन ( टी एन ) तिरुपत्तिकुण्डम एण्ड इट्स टॅपल्स, बुलेटिन ऑफ द मद्रास गवर्नमेण्ट म्यूजियम, नई दिल्ली, जनरल सेक्शन, 1, बी; 1934 मद्रास / मोनोग्राफ्स ग्रॉफ द गवर्नमेन्ट म्यूजियम, मद्रास. Jain Education International 327 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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