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________________ अध्याय 22] मध्य भारत कारण आसपास के परिवेश से ये भवन और भी ऊँचे दिखते हैं। इनमें चारों ओर खुला चक्रमण-मार्ग एवं प्रदक्षिणा-पथ है। इनके सभी भाग बाहर और भीतर एक दूसरे से संयुक्त हैं और इनके निर्माण की संयोजना एक ही धुरी पर की गयी है जिससे इनका स्वरूप अत्यंत संगठित और एकरूप बन पड़ा है । आयोजना के प्रावश्यक अंग अर्थात् अर्ध-मण्डप, मण्डप, अंतराल और गर्भगृह यहाँ के सभी मंदिरों में हैं। बड़े मंदिरों में गर्भगृह के चारों ओर एक आभ्यंतरिक प्रदक्षिणा-पथ भी है। आयोजना के समान, इनके उठान की भी कुछ विशेषताएँ हैं। मंदिर की जगती पर एक ऊँचा अधिष्ठान है जिसकी पंक्तिबद्ध अलंकरण-पट्टियाँ जगती को सुदृढ़ रूप से जकड़े हुए हैं, और इस कारण प्रकाश तथा छाया की संदर व्यवस्था भी हो गयी है। ऐसे ठोस और अलंकृत अधिष्ठान पर जंघा या मंदिर का भित्ति-भाग या मध्य भाग है, जिसमें अत्यंत रोचक ओर आकर्षक मूर्तियों के दो या तीन आड़े बंध हैं। जंघा के ऊपर छत के रूप में शिखर-माला है। मंदिर के विभिन्न भागों के शिखर आरोह-क्रम में ऊँचे उठते चले गये हैं। सबसे नीचा शिखर प्रवेश-मण्डप का है तो सबसे ऊँचा गर्भगृह का । ये शिखर, जो एक धुरीय रेखा पर निर्मित हैं, बारी-बारी से ऊँचे-नीचे हैं तथा इनकी परिणति उस सर्वोच्च शिखर में होती है जिसकी संयोजना केवल गर्भगह पर हुआ करती है । अर्ध-मण्डप, मण्डप और महा-मण्डप के शिखर स्तूपाकार हैं किन्तु मध्यवर्ती शिखर ऊँचा और वक्राकार है। पार्श्वनाथमंदिर में यह शिखर गौण शिखरों से भी संयुक्त है। बहिर्भाग की भाँति इन मंदिरों के अंतःभाग में भी विस्तृत अलंकरण और मूर्ति-संपदा की विपुलता आश्चर्यकारी है जो द्वारों, स्तंभों, सरदलों और छतों पर अंकित हैं। ये गजतालु छतें, जिनपर ज्यामितिक एवं पुष्प-वल्लरियों के अलंकरण हैं, असामान्य कौशल की परिचायक हैं। भीतरी भाग में अप्सराओं और शालभंजिकाओं की भी मूतियाँ हैं। उनके मादक अंगोपांग, आकर्षक मुद्राएं और अतिमनोज्ञ कला-कौशल आदि इन्हें मध्यकालीन मूर्तिकला की सर्वश्रेष्ठ कृतियाँ सिद्ध करती हैं। खजुराहो ग्राम के दक्षिण-पूर्व में घण्टाई नामक एक जैन मंदिर का खण्डहर है और उससे कुछ ही दूर एक नवनिर्मित प्राचीर के भीतर अनेक जैन मंदिर हैं। इस समूह में पार्श्वनाथ, आदिनाथ और शांतिनाथ के मंदिरों के अतिरिक्त अनेक नवनिर्मित मंदिर भी हैं। इनमें से कुछ तो प्राचीन मंदि अवशेषों पर बनाये गये हैं और कुछ का निर्माण नये स्थानों पर प्राचीन मंदिरों की अवशेष-सामग्री से हुआ है और उनमें प्राचीन प्रतिमाएं ही हैं। अनेक प्राचीन जैन मूर्तियाँ, जिनमें से कुछ उरेखित भी हैं, दीवारों में चिन दी गयी हैं। वर्तमान में जैन भक्तों के प्रमुख पूजास्थान शांतिनाथ-मंदिर में आदिनाथ की एक विशाल प्रतिमा (४.५ मीटर ऊँची) है जिसके पादपीठ पर १०२७-२८ ई० का समर्पणात्मक अभिलेख उत्कीर्ण है। इस मंदिर का बहुत अधिक नवीनीकरण हो चुका है, तथापि, उसके मध्य में एक प्राचीन भाग ऐसा है जिसमें अनेक देवकुलिकाओं में मध्यकालीन जैन स्थापत्य की विशेषतायुक्त अनेक प्राचीन मूर्तियाँ हैं । इन मूर्तियों में तीर्थंकर के माता-पिता की मूर्ति (चित्र १६३) अपनी कला-गरिमा के कारण महत्त्वपूर्ण है। 281 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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