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________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 1000 से 1300 ई० [ भाग 5 की है। चंदेलों की एक अन्य राजधानी हमीरपुर जिले में स्थित महोबा थी। यह क्षेत्र मध्यकालीन जैन मंदिरों और प्रतिमानों से भरा पड़ा है, जिनमें से कुछ की निर्माण-तिथियाँ चंदेल शासक जयवर्मा (सन् १११७), मदनवर्मा और परमर्दी (लगभग सन् ११६३-१२०१) के शासनकाल की हैं। खजुराहो एवं महोबा के अतिरिक्त झाँसी जिले और उसके समीपवर्ती, देवगढ़, चंदेरी, बुढी चंदेरी, सीरोनखुर्द, चाँदपुर, दुधई और मदनपुर नामक स्थानों पर भी दसवीं से तेरहवीं शताब्दी तक जैन कला और स्थापत्य की जो समृद्धि हुई उसका कारण भी चंदेल-संरक्षण था। इसी प्रकार, देवगढ़ का प्रसिद्ध स्थल राजा कीर्तिवर्मा (लगभग १०७०-६० ई०)के नाम पर कीत्तिगिरि के नाम से भी विख्यात हुआ । इस चंदेल-राजा के पूर्वजों ने उस प्रदेश पर प्रतीहार-साम्राज्य के बाद सत्ता प्राप्त की थी। इसके अतिरिक्त, दुधई में प्राप्त ६६ आधार-शिलाओं पर उत्कीर्ण कराये गये अभिलेखों में प्रसिद्ध चंदेल राजा यशोवर्मा के पौत्र युवराज देवलब्धि का उल्लेख है, और उसके निकटवर्ती मदनपुर के बारे में अनुश्रुति है कि उसे चंदेल मदनवर्मा ने बसाया था। मालवा के परमार तो जैनों के चंदेलों से भी अधिक उदार संरक्षक थे। प्रसिद्ध नगरी उज्जयिनी (माधुनिक उज्जैन) तथा राजधानी धारा (आधुनिक धार) जैनाचार्यों के प्रसिद्ध केंद्र थे। सत्ताईसवें मैन भट्टारक ने अपना पीठ भद्दलपुर से बदलकर उज्जैन में स्थापित किया, जहाँ सरस्वती-गच्छ और बलात्कार-गण का प्रारम्भ हुआ। धार में अनेक प्राचीन जैन मंदिर हैं जिनमें से दो विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं—एक तो पाश्वनाथ-मंदिर जहाँ देवसेन ने सन् ६३३ में दर्शनसार की रचना की, और दूसरा जिनवर-विहार जहाँ नयनंदी ने सन् १०४३ में सुदर्शनचरित लिखा । परमार मुंज (सन् १७२६५) ने अमितगति, महासेन, धनेश्वर और धनपाल नामक जैनाचार्यों को राजाश्रय दिया। राजा भोज (सन् १०००-५०) ने प्रसिद्ध जैनाचार्य प्रभाचंद्र को सम्मानित किया था। वह तिलकमंजरी के रचियता धनपाल का भी प्राश्रयदाता था और उसने उन्हें 'सरस्वती' की उपाधि से विभूषित किया था। कहा जाता है कि जैनाचार्य शांतिषेण ने राजा भोज की सभा के पण्डितों को पराजित किया था। राजा भोज ने जिनेश्वर-सूरि, बुद्धिसागर तथा नयनंदी नामक जैन मुनियों को भी राजाश्रय दिया। उसके शासनकाल में नेमिचंद्र ने केशोराय पाटन (आश्रमनगर) में लघु-द्रव्य-संग्रह की रचना की। इसी नाम से एक अन्य जैनाचार्य ने उसी काल में भोपाल के निकट भोजपुर में शांतिनाथ की एक विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठित की। यह भोजपूर अपने शिव-मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जिसे राजा भोज ने बनवाया था। चंदेल क्षेत्र--खजुराहो सामान्य विशेषताएँ खजुराहो स्थित जैन मंदिरों में विन्यास और उठान की वे ही विशेषताएँ हैं जो वहाँ के अन्य चंदेल मंदिरों की हैं। वे ऐसे प्राकार-रहित उत्तुंग भवन हैं जो ऊँची जगती पर निर्मित हैं। इसी 1 [इस अवधि में देवगढ़ स्थित स्मारकों की चर्चा प्रांशिक रूप से अध्याय 18 में की जा चुकी है--संपादक.] 280 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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