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अध्याय 21]
पूर्व भारत पगान स्थित सुप्रसिद्ध आनंद या नंद-मंदिर सर्वाधिक उल्लेखनीय है। इस मंदिर का निर्माण एवं प्रतिष्ठा क्यान्जिठ्ठा द्वारा सन् १०९१ या ११०५ में करायी गयी थी। लेमेत्थना और आनंदमंदिरों के मध्यवर्ती काल में मंदिर के नियोजन और उनकी ऊंचाई दोनों ने ही विशदता ग्रहण कर ली थी। इन मंदिरों में मूर्ति के स्वरूप और उसके स्थापत्यीय विनियोग को दृष्टि से ओझल नहीं किया गया। आनंद एक वर्गाकार मंदिर है जिसके चारों ओर आसन्न दिशाओं की प्रत्येक भित्ति के मध्यवर्ती भाग में प्रक्षिप्त प्रवेश-मण्डप है। इस प्रकार इस मंदिर की बाह्य विन्यास-रूपरेखा क्रूस-प्रकार की है। मंदिर के केंद्रवर्ती भाग में ईंटों का चिना हुअा एक ठोस वर्गाकार स्तंभ है जिसपर चार विशालकाय बुद्ध-प्रतिमाएँ हैं। प्रतिमाएँ देवकुलिकाओं में स्थित हैं जो परस्पर अंतरावकाश लिये हुए स्तंभ की चारों सतहों पर निर्मित हैं (रेखाचित्र २०) । चौमुखी वेदी के चारों ओर दो समकेंद्रक दीर्घाएँ हैं
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रेखाचित्र 20. पगान (बर्मा) : पानंद-मंदिर की रूप-रेखा
जो एक दूसरे में खुलती हैं। प्रवेश-मण्डपों तथा भित्तियों में जालीदार खिड़कियाँ लगी हैं, अत: आने-जाने के मार्ग एक दूसरे को काटते हैं। मंदिर के भीतर, विशेषकर वेदिका की प्रतिमाओं पर, प्रकाश आने के लिए बाह्य संरचना में चारों सतहों पर उभरे हए चार झरोखों की रचना की गयी है। मंदिर की शीर्ष-संरचना में दीर्घाओं के ऊपर अंतरावकाश-युक्त दो सतहवाली छतें हैं जिनपर एक वक्राकार शिखर मण्डित है। शिखर उस वेदिका के ऊपर है जिसपर गर्भगृह की बुद्ध-प्रतिमाएँ स्थित हैं। प्रत्येक प्रवेश-द्वार ढोलाकार छत से आच्छादित है, जिसके सामने के भाग पर त्रिकोणाकार शिखर है। इस प्रकार इस मंदिर में जैन चतुर्मख या सर्वतोभद्र-मंदिर की परिकल्पना की अत्यंत
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