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________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 1000 से 1300 ई० [ भाग 5 अपनाया गया है। इन मंदिरों में प्रत्येक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा चार द्वारों से युक्त वर्गाकार गर्भगह के मध्य में वेदी के स्थान पर प्रतिष्ठित है। इन मंदिरों में संभवत: सबसे प्राचीन मंदिर लेमेत्थना बर्मा के निचले भाग में हमवाजा (थाइखेत्ता--श्रीक्षेत्र, प्राचीन प्रोम) स्थित मंदिर है। यद्यपि इसके निर्माण की निश्चित तिथि ज्ञात नहीं है, तथापि कुछ विद्वान् इस प्राचीन नगर के स्मारकों में इसे सबसे प्राचीनतम मानते हैं, जिसके आधार पर वे इसके लिए पांचवीं और आठवीं शताब्दी के मध्य का काल निर्धारित करते हैं। इसकी ध्वस्त स्थिति के उपरांत भी इसके संयोजन की मूलभूत विशेषताओं का निर्धारण भली-भाँति किया जा सकता है। यह वर्गाकार है और इसकी चारों भुजाओं पर चार प्रवेश-द्वार हैं (रेखाचित्र १६)। प्रत्येक प्रवेश-द्वार को उसके पार्श्व पर प्रक्षिप्त दीवारों से और सुदढ़ किया गया है। गर्भगृह के केंद्र में ईटों से निर्मित एक ठोस वर्गाकार स्तंभ है जो प्रत्येक द्वार की Sculptured stonen EDEO-luctress ---- रेखाचित्र 19. हमवाजा (प्रोम, बर्मा) : लेमेत्थना की रूपरेखा एवं विभाग केंद्रवर्ती रेखा पर स्थित है। इस स्तंभ की चारों सतहों पर शिल्पांकित प्रतिमाएँ हैं। यह ऊंचाई में गर्भगृह की छत से लगा हुआ है जिससे इस स्तंभ और गर्भगृह की भित्तियों के मध्य की दूरी वेदिका के चारों ओर एक प्रदक्षिणा-पथ जैसी दीर्घा की रचना करती है। इस तरह इस मंदिर में प्रयुक्त जैन सर्वतोभद्रिका और सर्वतोभद्र की अभिकल्पना देखी जा सकती है। बौद्धों में इस प्रकार के मंदिर एक लंबे काल तक लोकप्रिय रहे हैं । बर्मी कला एवं स्थापत्य के पारंपरिक (पगान) काल में इस प्रकार के अनेक उल्लेखनीय मंदिरों का निर्माण हया जिसमें 270 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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