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________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 1000 से 1300 ई. [ भाग उल्लेखनीय अभिव्यक्ति देखी जा सकती है। __ बर्मा में इस प्रकार के मंदिरों का उपयोग हिन्दू धर्म के लिए भी हुआ है। इस संदर्भ में नट लौंग क्यौंग विष्णु-मंदिर का उल्लेख किया जा सकता है जो पगान स्थित सैकड़ों बौद्ध मंदिरों के मध्य एकमात्र हिन्दू मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण लगभग दसवीं शताब्दी के मध्य हुआ था। इस मंदिर का गर्भगह लगभग वर्गाकार है जिसके मध्य में ईंटों से निर्मित एक ठोस वर्गाकार स्तंभ है। स्तंभ की चारों सतहों पर ईंटों से निर्मित चार बड़ी प्रतिमाएँ हैं। ये प्रतिमाएँ संभवत: विष्णु के अवतारों की हैं। इस संभावना का आधार मंदिर की बाह्य भित्तियों पर शिल्पांकित विष्णु के अवतारों की प्रतिमाएँ हैं। इस प्रकार के स्तंभ या ईंट-निर्मित स्तंभ से,जिनकी चारों सतहों पर प्रतिमाएँ जड़ी हैं, चाहे वे बौद्ध हों या हिन्दू, यह स्पष्टत: पहचाना जा सकता है कि उनके निर्माण की प्रेरणा जैन चतुमख या सर्वतोभद्र-प्रतिमा से ग्रहण की गयी है। यहाँ पर इन बर्मी मंदिरों के उल्लेख करने का कारण यह है कि इन मंदिरों के भली-भांति सुरक्षित होने के कारण इनमें प्रयुक्त सर्वतोभद्रिका-प्रतिमा और सर्वतोभद्र-मंदिर की अभिकल्पना को सरलता से समझा जा सकता है। भारत में उपलब्ध कम से कम ऐसे ही दो बौद्ध मंदिरों के भग्नावशेषों के प्राप्त होने से यह अनुमान किया जाता है कि इन बौद्ध मंदिरों में भी सर्वतोभद्र और सर्वतोभद्रिका रेखाचित्र 21. पहाड़पुर (बांग्ला देश) : मंदिर की रूपरेखा 272 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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