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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 300 ई. पू. से 300 ई.
[ भाग 2
से प्राप्त विदेशों के कला-प्रतीकों का मुक्त रूप से समावेश करने की पर्याप्त एवं व्यापक छुट थी, जिसका उद्देश्य अंशत: मिश्रित रुचिसंपन्न ग्राहकों को संतुष्ट करना था। इसे अभिव्यक्ति देने का प्रमुख साधन था चित्तीदार लाल बलुआ पत्थर जिसे सीकरी, रूपवास और ताँतपुर जैसे स्थानों की खानों से निकाला गया।
ईसा-पूर्व द्वितीय शताब्दी के मध्य में एक जैन मंदिर (पासाद) के विद्यमान होने का प्रमाण एक शिलालेख से मिलता है जिसमें उत्तरदासक नामक श्रावक द्वारा एक पासाद-तोरण समर्पित किये जाने का उल्लेख है। एक अन्य शिलालेख में, जो एक शिल्पांकित सरदल-खण्ड पर उत्कीर्ण है
और जो कनिष्क-प्रथम से ठीक पहले के युग का है, धामघोषा द्वारा एक पासाद के दान का उल्लेख है । पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा में, सुरक्षित एक आयाग-पट भी लगभग इसी अवधि का है (पु० सं० म०, क्यू २, चित्र १ )। इसपर उत्कीर्ण शिलालेख में लोणशोभिका की पुत्री वासु नामक गणिका द्वारा, निग्रंथ-अर्हतायन (अर्हतों का चैत्यवास) में एक अर्हत मंदिर (देविकुल), सभा-भवन (आयाग-सभा), प्याऊ (प्रपा) और एक शिलापट्ट के समर्पित किये जाने का उल्लेख है। एक अन्य शिलालेख में जो (अज्ञात संवत् के वर्ष २११ का) संभवतः कुषाणयुग का है और एक खण्डित प्रतिमा के पादपीठ पर अंकित है, अर्हतों के मंदिर (आयतन) में महावीर की मूर्ति के प्रतिष्ठापन और एक जिनालय (देविकुल) के निर्माण का उल्लेख है। मथुरा संग्रहालय के ही एक खण्डित पायाग-पट पर 'विहार' शब्द अंकित है। बहुसंख्य तीर्थकर मूर्तियों और जैन-देवी सरस्वती की एक मूर्ति की खोज से यह सिद्ध होता है कि कुषाणयुग में मथुरा में अनेक जैन मंदिर विद्यमान थे, यद्यपि इस बात की सम्भावना को भी पूर्णतः अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि इनमें से बहुत-सी मूर्तियाँ खले स्थानों में प्रतिष्ठापित की गयी थीं।
कंकालो टोला : स्तूपों को प्रतिकृतियाँ तथा अवयव ।
यद्यपि मथुरा के प्रमुख जैन क्षेत्र कंकाली टीले से हाडिंज, कनिंघम, ग्रावजे और फ्यूरर, द्वारा यत्र-तत्र की गयी खुदाइयों और खोजों में अत्यधिक विशाल संख्या में मूर्तियाँ, आयाग-पट,
1 एपोग्राफिया इण्डिका. 2; 1893-94; 198./ल्यूडर्स (एच).लिस्ट अॉफ ब्राह्मी इंसक्रिप्शन्स. 1912. क्रमांक 93. 2 एपीग्राफिया इणिका. 2; 1893-94; 199. / ल्यूडर्स, पूर्वोक्त, क्रमांक 99./ लखनऊ संग्रहालय क्रमांक जे- 540. 3 पु० सं० म०=पुरातत्त्व संग्रहालय मथुरा; रा. स. ल.= राज्य संग्रहालय लखनऊ. 4 जर्नल मॉफ द यू पी हिस्टॉरिकल सोसायटी . 23; 1940; 69-70. / ल्यू डर्स, पूर्वोक्त. क्रमांक 102 .
ल्यूडर्स, पूर्वोक्त, क्रमांक 78./ ल्यूजन-डि लियू ने इस तिथि को 199 पढ़ा है. द्रष्टव्य : ल्यूजन-डि लियू (जे ई). 'सीषियन' पीरियड. लीडन. 1949. 4 58. आर सी शर्मा ने उसके मत का खण्डन किया है. उन्होंने खोयी हुई प्रतिमा के उपलब्ध चरणों के शैलीगत तत्त्वों को ध्यान में रखते हुए इस कृति को कुषाणों के शासन के अंत तथा गुप्तवंशीय शासन के प्रारंभ के मध्यवर्ती संक्रमणकाल का बताया है. द्रष्टव्य : महावीर जैन विद्यालय गोल्डन
जुबली बॉल्यूम. 1968. बम्बई. पृ 149. 6 जर्नल मॉफ द यू पी हिस्टॉरिकल सोसाइटी. 23; 1950; 71. 7 कुछ जैन पुरावशेष सीतल-घाटी, रानी की मण्डी और मनोहरपुर से भी प्राप्त हुए थे.
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