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प्रास्ताविक
[ भाग 1 अथवा पालंभिक (श्रावस्ती और राजगृह के मध्य), अस्थिकग्राम (वैशाली से पावा जानेवाले मार्ग पर), भद्रिक (वर्तमान मुंगेर), भोगपुर (पावा और वैशाली के मध्य), चंपा (भागलपुर के निकट चंपानगर अथवा चंपापुर), चोरगसंनिवेश (बंगाल स्थित छोरेय), दढभूमि (सिंहभूम जिले में दल भूम), जंबुसण्ड (पावापुरी के निकट), कजंगल (संथाल परगना में कंकजोर), कौशांबी (इलाहाबाद के निकट कोसम), राढा (पश्चिम बंगाल), लोहग्गला (राँची जिले में लोहारडागा), मध्यमपावा (पावापुरी), मलय (निर्गय-बिहार), मिथिला (नेपाल की तराई स्थित जनकपुर), नालंदा (नालंदा जिला ), पुरिमताल (बिहार का पुरुलिया स्थान, अन्य मतानुसार उत्तर प्रदेश का प्रयाग, इलाहाबाद), राजगृह (नालंदा जिले में राजगिर), श्रावस्ती (गोंडा-बहराइच जिलों में सहेठ-महेठ), सेयविया (सहेठ-महेठ के निकट), सिद्धार्थपुर (बीरभूम जिले का सिद्धनगर), सुब्भभूमि (दक्षिणपश्चिमी बंगाल का सुहम), सुंसुमारपुर (मिरजापुर जिले में चुनार के निकट), तोसलि (पुरी जिले में धौली), वाराणसी एवं वैशाली (बसाढ़)। कतिपय अनुश्रुतियों के अनुसार महावीर ने और भी कुछ सुदूर स्थानों में विहार किया था।
उपर्य क्त स्थानों के अतिरिक्त, जिनकी पहचान संभव है, महावीर से संबद्ध ऐसे भी कुछ स्थान हैं जिनकी स्थिति निश्चित नहीं की जा सकती । इससे इतना तो स्पष्ट है कि महावीर ने बिहार, पश्चिम बंगाल के पश्चिमी जिलों तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वी भागों में जैन धर्म-प्रचार का प्रयास किया था । अतएव ऐसा लगता है कि पार्श्वनाथ और महावीर दोनों के प्रभाव-क्षेत्र प्रायः अभिन्न रहे हैं। यह भी संभव है कि पार्श्वनाथ और महावीर के अंतराल में किसी प्रकार की कोई धार्मिक अराजकता रही हो जिसके कारण महावीर ने अपना जीवन उसी क्षेत्र में जैन धर्म को पुनर्गठित करने में व्यतीत कर दिया जहाँ पहले पार्श्वनाथ द्वारा धर्म-प्रसार किया जा चुका था।
महावीर के अनुयायी पर्याप्त संख्या में रहे होंगे, यथा- चौदह हजार मुनि, छत्तीस हजार प्रायिकाएँ तथा पाँच लाख के लगभग श्रावक-श्राविकाएँ । अनेक राजा और रानियाँ, राजकुमार और राजकुमारियाँ उनके भक्त थे, किन्तु उन सब की ऐतिहासिकता प्रमाणित करना संभव नहीं है। इस संबंध में कुछ विद्वान् तो यहाँ तक कहते हैं कि उस काल के प्रायः सोलह महाजनपद महावीर के प्रभाव-क्षेत्र में थे, जबकि श्री घटगे का कथन है कि 'परवर्ती जैन अनुश्रुति जिसे पर्याप्त ऐतिहासिक समर्थन प्राप्त नहीं है, तत्कालीन उत्तर-भारत के प्रायः सभी राजाओं से महावीर का पारिवारिक संबंध बताती है क्योंकि उनकी रानियाँ उन महाराजा चेटक की पुत्रियाँ बतायी जाती हैं जो महावीर के मामा थे।
. महावीर के कतिपय प्रतिद्वंद्वी भी रहे प्रतीत होते हैं जिनमें से एक प्रबल प्रतिद्वंद्वी आजीविक संप्रदाय का संस्थापक गोसाल मक्खलिपुत्त था। वह श्रावस्ती का निवासी था। परंतु उसके सुनिश्चित
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घटगे (ए एम). एज ऑफ इम्पीरियल यूनिटी. संपा : पार सी मजूमदार तथा ए डी पुसालकर. 1960. बंबई. पृ 415. एक अन्य परंपरा के अनुसार चेटक महावीर के नाना थे.
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