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________________ अध्याय 3 जैन धर्म का प्रसार महावीर तीर्थंकर पार्श्वनाथ और महावीर के निर्वाण के मध्य ढाई सौ वर्ष लंबे अंतराल में जैन धर्म के प्रसार अथवा उसकी स्थिति के विषय में प्रायः कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। सूत्रकृतांग" से यह प्रतीत होता है कि इस अवधि में ३६३ मत-मतांतरों का उदय हुआ था परंतु यह स्पष्ट नहीं है कि इन विचारधाराओं का जैन धर्म के साथ कितना और क्या संबंध था । ऐसा प्रतीत होता है कि पार्श्वनाथ के निर्वाणोपरांत उस काल में ऐसा कोई उल्लेखनीय व्यक्तित्व सामने नहीं आया जो जैनधर्म को पुनःसंगठित कर उसका प्रसार कर पाता। किन्तु, महावीर ने इस परिस्थिति में परिवर्तन ला दिया और अपने चरित्र, दूरदर्शिता एवं क्रियाशीलता के बल पर जैन धर्म को संगठित कर उन्होंने उसका प्रसार किया। महावीर का जन्म वैशाली के एक उपनगर कुण्डग्राम में हुआ था जो अब बसुकुण्ड कहलाता है। उनकी माता प्रसिद्ध वैशाली नगर (उत्तर बिहार के वैशाली जिले में आधुनिक बसाढ़) में जनमी थीं। महावीर का निर्वाण पावा में हा, जिसकी पहचान वर्तमान पटना जिलांतर्गत पावापुरी के साथ की जाती है। इससे प्रतीत होता है कि महावीर बिहार से घनिष्ठतम रूप से संबद्ध रहे। महावीर का जीवनवृत्त सुविदित है। उन्होंने तीस वर्ष की अवस्था में गृहत्याग किया था। उसके उपरांत बारह वर्ष तक तपस्या की और तत्पश्चात् तीस वर्ष पर्यंत विहार करके धर्म-प्रचार किया। उनके निर्वाण की परंपरामान्य तिथि ईसा-पूर्व ५२७ है। वैसे कुछ विद्वान इस तिथि को ईसापूर्व ४६७ मानने के पक्ष में हैं। महावीर ने तीस वर्ष के अपने धर्म-प्रचार-काल में एक स्थान से दूसरे स्थान पर निरंतर भ्रमण किया। कहा जाता है कि उन्होंने अनेक स्थानों का भ्रमण करके धर्म का प्रचार किया, जो इस बात का भी सूचक है कि उनका प्रभाव कितने क्षेत्रों में व्याप्त था। ये स्थान हैं : पालवी 1 जैन सूत्राज. सूत्रकृतांग सूत्र. भाग 2. अनुः हरमन जेकोबी. सेक्रेड बुक्स प्रॉफ द ईस्ट.45. 1895. प्रॉक्सफोर्ड. पृ 315, टीका पृ208 तथा परवर्ती. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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