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________________ प्रास्ताविक भाग 1 कुछ विद्वानों के अनुसार, हड़प्पा से प्राप्त एक मुद्रा ( रेखाचित्र १ ) पर अंकित है, जिसपर ऊपर की पंक्ति में एक साधु वन में कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ा है और एक बैल के पास बैठा एक गृहस्थश्रावक उसकी पूजा कर रहा है, और नीचे की पंक्ति में सात प्राकृतियाँ, तथोक्त कायोत्सर्ग मुद्रा में रेखाचित्र 1 मोहन-जो-दड़ो सेलखड़ी में उकेरी मुद्रा खड़ी हैं। इस समीकरण से हड़प्पाकाल में जैन धर्म के अस्तित्व का संकेत मिलता है । अन्य विद्वानों ने तथाकथित पशुपतिवाली प्रसिद्ध मुद्रा का एक तीर्थंकर ( कदाचित् ऋषभनाथ ) से समीकरण होने का संकेत किया है । इस प्रकार के 'समीकरण' अंतिम नहीं माने जा सकते जबतक कि इन मुद्राओं पर अंकित लिपि को पढ़ नहीं लिया जाता । (M) अंत में यह कहा जा सकता है कि पार्श्वनाथ और महावीर द्वारा उपदिष्ट साधुत्व की परंपरा निस्संदेह अत्यन्त प्राचीन है किन्तु अन्य अनेक भ्रमणशील साधुओं के मतों से भिन्न जैन मत की व्यवस्थित आचार-संहिता पार्श्वनाथ और महावीर की ही देन है । जैन पुराणों में चौबीस तीर्थंकरों के विधान से यह अभीष्ट है कि तपश्चरण के इस सिद्धांत के आरंभिक या समकालीन भाष्यकारों का स्मरण रहे और उनकी महिमा बढ़े तथा साथ ही जैन धर्म की सनातनता स्थापित रहे । इसलिए पार्वश्नाथ से पहले के तीर्थंकरों की समय-सीमा की यथावत् मान्यता या उनकी ऐतिहासिकता, हमारे वर्तमान ज्ञान की परिसीमा के कारण अव्यवहार्य होगी । Jain Education International 22 For Private & Personal Use Only मधुसूदन नरहर देशपाण्डे www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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