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________________ अध्याय 15 ] पूर्व भारत अंकित हैं। मस्तक के ऊपर छत्र है और संगीत-वाद्य बजाते हाथ दिखाये गये हैं। मस्तक के पीछे गोलाकार प्रभामण्डल है । इस मूर्ति में भी गुप्त-कला के परंपरागत लक्षण है; यथा, अर्धनिमीलित नेत्र, लंबे कर्ण और कंधों पर लहराती कुछ जटामोंवाला जटाजूट । शरीर समचतुरस्र और सौम्य है । शैलीगत आधार पर यह मुर्ति भी उसी अवधि अर्थात् पाठवीं शती की हो सकती है जिसकी ऋषभनाथ की उपर्युक्त पद्मासन-मूर्ति है। पोड़ासिंगडी में अब भी बहुत-सी जैन मूर्तियाँ पड़ी हैं, जिनमें पार्श्वनाथ, अंबिका आदि की मूर्तियाँ भी हैं। इसके अतिरिक्त, इसी स्थान से श्रीनिवासन भी पार्श्वनाथ, महावीर, अंबिका आदि की कुछ मूर्तियाँ लाये थे, जिन्हें उन्होंने पानंदपुर के पंचभवन के सामने सीमेंट की चौकियों पर स्थापित करवा दिया है। बालासोर जिले के भद्रक रेलवे स्टेशन के उत्तर में कुछ मील दूरी पर स्थित चरंपा नौवींदसवीं शताब्दियों में जैन कला और संस्कृति का एक और महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा, जहाँ की अनेक प्राकषर्क जैन मूर्तियों की सूचना मिलती है। उनमें से चार, जो अब राज्य संग्रहालय भुवनेश्वर में संगृहीत हैं, की अपनी ही शैली है। दास ने इनके विषय में लिखा है। उनमें से एक कायोत्सर्ग-मुद्रा में स्थित ऋषभनाथ की है, जिसके सुदर जटाभार की कुछ लटें कंधों पर झूल रही हैं। अन्य अनेक मूर्तियों की भाँति उनके एक अोर भरत और दूसरी ओर बाहुबली का अंकन हुआ है। साथ ही इस मूर्ति में भी मस्तक के पीछे ऊपर उड़ते हुए गंधर्व दिखाये गये हैं। मूर्ति के पिछले शिलापट्ट पर अष्टग्रह उत्कीर्ण किये गये हैं। पादपीठ के नीचे बृषभ-चिह्न अंकित है। शेष तीन मूर्तियों में अजितनाथ, शांतिनाथ (चित्र ८५ क) और महावीर की मूर्तियाँ हैं । इन सब की विशेषता यह है कि इनपर गहरे कटाव के चिह्न हैं। यह चिह्न अकारण लगे हुए नहीं हो सकते पर इनके होने का अभिप्राय वता पाना कठिन है। यह बहुत संभव प्रतीत होता है कि इन चिह्नों के द्वारा कलाकार ने यह दर्शाने का प्रयत्न किया हो कि तीर्थंकर को ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने के लिए कैसी कठोर साधना करनी पड़ती है। दूसरी मूर्ति पद्मासन ध्यान-मुद्रा में स्थित अजितनाथ की है। उनके दोनों ओर नीचे एकएक चमरधारी और ऊपर एक-एक मालाधारी गंधर्व उड़ते हुए दिखाये गये हैं। मस्तक के ऊपर छत्रत्रय 1 दास (महेश पी). जैन एण्टिक्विटीज फ्रॉम चरंपा. उड़ीसा हिस्टॉरिकल रिसर्च जर्नल. 11, 1; 1962; 50 तथा परवर्ती. 167 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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