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________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 600 से 1000 ई० [भाग 4 का विवरण उद्धृत किया जा सकता है : 'नास्तिकों में सर्वाधिक संख्या निग्रंथों की है . . . निग्रंथ और उनके अनुयायी निर्वस्त्र भ्रमण किया करते थे, और अपने केशों को क्रूरता से उखाड़ने, शरीर को मलिन रहने देने और नदी के तट पर खड़े सूखे वृक्ष की भांति अपने पैरों को कठोर हो जाने देने में अपनी महत्ता जताते हुए, वे लोगों का ध्यान आकर्षित किया करते थे। लगभग उसी अवधि के शैलोद्भव राजा धर्मराज (छठी/सातवीं शताब्दी) के बानपुर-ताम्रलेख में उनकी रानी कल्याण देवी के द्वारा एकशत-प्रबुद्धचंद्र नामक जैन मुनि को कुछ भूमि दान में दिये जाने का उल्लेख है। उड़ीसा में जैन धर्म की दिगंबर परंपरा प्रचलित थी। इस युग में उड़ीसा के विभिन्न भागों में जैन धर्म, कला और संस्कृति के प्रचलन को सिद्ध करनेवाले पुरावशेष विपुल मात्रा में हैं। कालक्रमानुसार, आठवीं शती में पोड़ासिंगिडी एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण जैन केन्द्र रहा । क्योंझर जिले के आनंदपुर उपखण्ड में बौला पर्वतश्रेणियों के वनों में स्थित इस स्थान से अनेक जैन मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं, जिन्हें जोशी द्वारा प्रकाश में लाया गया है। इन मूर्तियों में अद्वितीय हैं, ऋषभनाथ की अभिलेखांकित पद्मासन मूर्तियाँ और अभिलेखरहित खड्गासन मूर्तियाँ, उड़ीसा में ऋषभनाथ की पूजा का विशेष प्रचलन रहा प्रतीत होता है। अभिलेखांकित मूर्ति (चित्र ८५ क) ध्यान-मुद्रा में कमलपुष्पयुक्त पादपीठ पर आसीन दिखायी गयी है। पादपीठ पर वृषभ-चिह्न अंकित है । वृषभ के सामने दीपक अंकित किया हुआ प्रतीत होता है और श्रद्धावनत दो भक्त करबद्ध घुटनों के बल बैठे हैं। ऊपर, दोनों ओर एक-एक मालाधारी गंधर्व उड़ता दिखाया गया है। तीर्थंकर के शीर्ष के पीछे प्रभामण्डल है। मूर्ति का समचतुरस्र संस्थान, ध्यान का संकेत करते अर्धनिमीलित नेत्र, कुंतल केश, ऊष्णीष और लंबे कर्ण गुप्त-कला की परंपरा के हैं। मूर्ति के दायें हाथ के पास चार पंक्तियों का एक छोटा-सा अभिलेख है, जिससे ज्ञात होता है कि ऋषभ-भट्टारक की इस मूर्ति का दान इढक ( ? ) ने किया था। जोशी का विचार है कि पादपीठ पर वृषभ के सामने अंकित भक्त-युगल भरत और बाहुबली हो सकते हैं। उड़ीसा में अबतक प्राप्त मूर्तियों में यही प्राचीनतम अभिलेखांकित मूर्ति है। कायोत्सर्ग-मुद्रा में ऋषभनाथ की एक अन्य मूर्ति दो सिंहों पर आधारित कमलपुष्पयुक्त पाद पीठ पर स्थित है। पादपीठ के ठीक नीचे लांछन वृषभ अंकित है । ऋषभनाथ के दोनों ओर, उतनी ही दक्षता से उत्कीर्ण एक-एक चमरधारी और हाथ में माला लिये हुए एक-एक उड़ता हा गंधर्व 1 बील (एस). लाइफ प्रॉफ ह्वेनसांग. 1688. लंदन. पृ 162./ बील, पूर्वोक्त, खण्ड 2, 1884, पृ 208. 2 बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रंथ. पृ 170 पर के एस बेहरा. 3 जोशी (अजुन). ए युनीक वृषभ इमेज फ्रॉम पोड़ासिंगडी. उड़ीसा हिस्टॉरिकल रिसर्च जर्नल . 10,3; 1961, 74 तथा परवर्ती./ जोशी (अर्जुन). फर्दर लाइट ऑन द रिमेन्स अॉफ पोड़ासिंगडी. वही. 10, 4; 19623 30 तथा परवर्ती. 166 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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