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________________ अध्याय 15 ] पूर्व भारत उसी जिले में, जैन मंदिरों और मूर्तियों की दृष्टि से पाकबीरा सभी स्थानों से अधिक समृद्ध रहा है । यहाँ प्राप्त मूर्तियाँ अब एक छतरी में रखी हैं। इनमें महावीर, पार्श्वनाथ, कुन्थुनाथ, नेमिनाथ, शांतिनाथ और ऋषभनाथ की मूर्तियाँ सम्मिलित हैं और अधिकतर दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दियों की हैं, किन्तु महावीर की एक मूर्ति पर नौवीं शती का छोटा-सा अभिलेख है । पाकबीरा से प्राप्त अभिलेखांकित मूर्तियों में एक शांतिनाथ (चित्र ८४ क) की है, जो पुरालिपि-विज्ञान के आधार पर ग्यारहवीं शती की मानी जा सकती है । कायोत्सर्ग-मुद्रा में तीर्थंकर-युगल पंखुड़ियोंवाले कमल पर खड़े हैं, जो सप्तरथ पादपीठ पर बना है, जिसके चारों ओर ऊपर नीचे के किनारे शिल्पांकित हैं। लांछन हरिण पादपीठ के मध्य में अंकित है। दे ने इस मूर्ति का विवरण लिखा है। इसके पादपीठ पर उत्कीर्ण लघु आकृतियों में से एक को उन्होंने शिशुओं का अधिष्ठाता देव मेषमुख नैगमेषी और चार को अंजलि-मुद्रा में आसीन नारी-प्राकृतियाँ माना है। दे लिखते हैं कि पादपीठ के नीचे बायीं ओर कलश और दायीं ओर शिवलिंग का अंकन है। एक जैन मूर्ति के पादपीठ पर प्रतीक के रूप में लिंग का अंकन एक विशेष बात है। साथ ही, युगल-पंखुड़ियोंवाले कमल पर कायोत्सर्ग-मुद्रा में ऋषभनाथ की मूर्ति एक उत्कृष्ट कलाकृति है। उदात्त मुखाकृति सहित शरीर का समचतुरस्र संस्थान, कुशलता से गूंथा गया जटाजूट और अन्य विशेषताएँ इस मूर्ति की भव्यता में वृद्धि करते हैं। इसी कुशलता से दोनों ओर एक-एक चमरधारी अनुचर का अंकन है । जैसा कि प्रायः देखा जाता है, इस मूर्ति के पिछले शिलापट्ट के शीर्षभाग पर भी चौबीस तीर्थंकर-मूर्तियाँ, दोनों ओर बारह-बारह की पंक्ति में, उत्कीर्ण की गयी हैं। साथ में उड़ते हुए गंधर्व और दुदुभि या करताल बजाते हुए हाथ दिखाये गये हैं। अनुचर प्राकृतियों के प्राभूषणों और शारीरिक सौष्ठव की संयोजना में कलाकार की उस उत्कृष्ट कोटि की प्रतिभा का परिचय मिलता है जिसके द्वारा वह इन प्राकृतियों के माध्यम से मूर्तिशास्त्रीय विधानों और सौंदर्यशास्त्रीय व्यावहारिकता की संगति बिठा सका। कलाकार की सिद्धहस्तता पार्श्वनाथ के मूयंकन में भी देखी जा सकती है (चित्र ८४ ख) जिसका अब केवल नीचे का भाग ही शेष बचा है, और जो नौवीं-दसवीं शताब्दियों की कृति है। चमरधारियों तथा एक-दूसरे के पुच्छ भागों को परस्पर गुथित किये दो, नागिनें मूर्तन की उस परम उत्कृष्टता की द्योतक हैं, जो कोई कलाकार तीर्थकर-मूर्तियों के अंकन में गुप्त-कला की गरिमा के प्रतिबिम्बन द्वारा प्रस्तुत कर सकता था । पाकबीरा से प्राप्त अन्य उल्लेखनीय पुरावशेषों में दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दियों की ऋषभनाथ की अनेक मूर्तियों के अतिरिक्त एक खड़ी अंबिका की और एक यक्ष की मूर्तियाँ तथा एक शांतिनाथ की मूर्ति के नीचे का खण्डित भाग सम्मिलित है। पश्चिम बंगाल के अन्य जिलों में भी पूर्व मध्यकाल की जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। उड़ीसा उड़ीसा में यद्यपि पूर्वकाल के जैन पुरावशेष कम हैं, प्रारंभिक मध्यकाल के अवशेष बहुत बड़ी संख्या में उपलब्ध हए हैं। विचाराधीन अवधि में इस धर्म की लोकप्रियता के संदर्भ में हनसांग 1 जैन जर्नल. 5, 1; 1970; 24-25 में सुधीन दे. 165 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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