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________________ अध्याय 13 पश्चिम भारत विचाराधीन अवधि में बहुत कम जैन अवशेष प्राप्त हुए हैं, किन्तु साहित्य में मिले प्रमाणों से इतना निश्चित है कि इस अंतराल में मध्य तथा पश्चिम भारत में कई जैन केन्द्र वर्तमान थे । तत्युगीन जैन अवशेषों का ऐसा प्रभाव केवल पश्चिम भारत में ही नहीं, अपितु महावीर की जन्मभूमि का गौरव प्राप्त करनेवाले मगध में भी है, जहाँ राजगिर की कुछ मूर्तियों को छोड़कर इस अवधि का अन्य कोई अवशेष नहीं मिल सका है । मध्य (उज्जैन) तथा पश्चिम भारत (सिंधु सौवीर ) में जैन धर्म की लोकप्रियता संबंधी प्रारंभिक जैन परंपरा के विषय में अध्याय ८ में विचार किया जा चुका है, जहाँ यह भी उल्लेख किया जा चुका है कि क्षत्रप-शासनकाल में गिरनार - जूनागढ़ के निकट सौराष्ट्र में जैन मुनियों के निवास का संकेत मिलता है । इसलिए, ऐसी आशा है कि भविष्य में हमें तीसरी, चौथी और परवर्ती शताब्दियों के जैन अवशेष राजस्थान, गुजरात और दक्षिणापथ से प्राप्त होंगे, विशेषकर गुजरात में जूनागढ़, वलभि और भड़ौंच तथा बंबई के निकट शूरपारक या आधुनिक सोपर और प्रतिष्ठानपुर क्षेत्रों से । Jain Education International चौथी शती ई० के आरंभ में ही, हमें दो जैन परिषदों के प्रायः एक ही समय में आयोजित अधिवेशनों का संदर्भ मिलता है, जो मथुरा में प्रार्य स्कंदिल तथा वलभि ( सौराष्ट्र ) में प्रार्य नागार्जुन की अध्यक्षता में हुए । उपलब्ध श्वेतांबर प्रागम ग्रंथों में मथुरा परिषद् द्वारा मान्य धर्म-नियमों का उल्लेख अधिक है । जैनागम के संपादन और संरक्षण के लिए पुनः परिषद् के दूसरे अधिवेशन का आयोजन वलभि में देवाधिगणि-क्षमा श्रमण की अध्यक्षता में हुआ । मान्यता यह है कि वर्तमान श्वेतांबर आगम इस दूसरी वलभि परिषद् का अनुगमन करते हैं, जिसका अधिवेशन महावीर - निर्वाण के ६८० वर्ष पश्चात् अर्थात् ४५३ ई० में हुआ । वलभि में दो शताब्दियों के अंतराल में परिषद् के द्वितीय अधिवेशन की आवश्यकता क्यों पड़ी जबकि चौथी शती में ही आगम की रचना कर ली गयी थी, यह अभी तक अन्वेषण का विषय है। इसका एक युक्तिसंगत समाधान हो सकता है। पहले ही ८३ ई० में ( श्वेतांबरों के अनुसार), या ८० ई० में (दिगंबरों के अनुसार ) आर्य कृष्ण श्रमण के शिष्य शिवभूति के नेतृत्व में दिगंबर ग्राम्नाय का उदय हुआ । दिगंबर - श्वेतांबर मतभेद पहले कुछ समस्याओं तक ही 139 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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