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________________ अध्याय 11 ] पूर्व भारत चक्र की परिधि में अंकित राजपुरुष की पहचान चंदा ने अरिष्टनेमि (युवा राजकुमार नेमिनाथ) के रूप में की थी किन्तु शाह के अनुसार यह आकृति चक्रपूरुष की है। . शैली की दृष्टि से इस प्रतिमा की समकालीन छह अन्य तीर्थंकर-प्रतिमाएँ हैं जो पूर्वी सोनभण्डार गुफा के भीतर की दक्षिणी भित्ति पर उत्कीर्ण की गयी हैं। इन छह शिल्पांकनों में से पाँच गुफा के प्रवेशद्वार (चित्र ५१ ख) के एक ओर हैं और छठी दूसरी ओर अकेली ही है। शिलाफलक पर पहली पाँच प्रतिमाएँ एक पंक्ति में उत्कीर्ण की गयी हैं। इनमें से पहली दो छठे तीर्थकर पदमप्रभ की है। तीसरी तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की और अंतिम दो महावीर की हैं। यह संपूर्ण रचना मुख्य रूप से इस तथ्य को प्रदर्शित करती है कि आमोद-प्रमोद की विभिन्न स्थितियों में क्रीड़ारत अनुचरों की मूर्तियों के पार्श्व में अंकित तीर्थंकर-प्रतिमाओं के गतिहीन एवं रुढिबद्ध चित्रण में कितना विरोधाभास है। संपूर्ण रचना संतुलित रूप से की गयी है। विभिन्न तीर्थंकर-प्रतिमाओं के लिए उचित ढंग से चौखटा बनाया गया है। वे सब मिलकर एक विस्तृत फलक पर चित्र-वल्लरी का रूप धारण कर लेती हैं। इस फलक की समरूपता केवल उन दो छोटे-छोटे कमलों के कारण बिगड़ती है जो पद्मप्रभ की प्रथम दो मूर्तियों के नीचे बनाये गये हैं किन्तु रचना के संपूर्ण कला-कौशल पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता । जहाँ तक गौण विवरणों का प्रश्न है, इन शिल्पांकनों की प्रस्तूतीकरण-योजना लगभग एक जैसी ही है। भेद केवल विभिन्न तीर्थंकरों के परिचय-चिह्नों के अंकन में ही दिखाई पड़ता है। इस प्रकार तीर्थकर-प्रतिमाएं या तो पद्मासन मुद्रा में हैं या खड़गासन में, किन्तु इन सभी के साथ ऊपर से नीचे तक के स्तरों में अंकित हैं ये - (क) दोनों ओर हवा में झलती हई प्राकृतियाँ जिनके हाथों में या तो मालाएँ हैं या वे भक्तिभाव से केवल हाथ जोड़े हुए हैं; (ख) दोनों ओर खड़े हुए सेवक, जो चौरी लिये हुए हैं; (ग) दोनों ओर ध्यान-मुद्रा में आसीन एक-एक तीर्थंकर-प्रतिमा। नीचे देवकुलिकाओं में उत्कीर्ण तीर्थकर-मूर्तियों के पादपीठ पर कुछ और विवरण भी हैं। पद्मप्रभ के शिल्पांकनों के साथ कमल उत्कीर्ण हैं तथा पार्श्वनाथ के साथ विपरीत दिशाओं की ओर मुख किये हुए दो ऐसे हाथी अंकित हैं, जो कलात्मक रूप से उत्कीर्ण चक्र के द्वारा एक-दूसरे से अलग दिखाये गये हैं। जबकि इसी प्रकार के चक्र के पार्श्व में महावीर के साथ सिंहों का अंकन किया गया है । प्रवेशद्वार की दूसरी ओर का एकमात्र शिल्पांकन आकार में बड़ा है, किन्तु बुरी तरह खण्डित हो चका है। किन्तु उसमें भी शैली की वही विशदता है, जो अन्य मूर्तियों में दृष्टिगोचर होती है। उस पर कुछ और अधिक विवरण हैं - जैसे कि भामण्डल के ऊपर एक कल्प-वृक्ष उत्कीर्ण किया गया है और आसन पर एक सुविस्तीर्ण आस्तरक है। वृक्ष पर अशोक-पुष्प और पत्तियों के स्पष्ट गुच्छे हैं। 1 शाह, पूर्वोक्त, 1955, पृ 14. 2 कुरैशी तथा घोष, पूर्वोक्त, पृ 26, चित्र 7 ख. 129 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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