SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुभव और बुद्धिवाद की समस्या ५५ है, और इसी प्रकार अलौकिक शास्त्र-ज्ञान भी मिथ्या ही है। इस प्रकार शास्त्र होने के कारण ज्ञान में अलौकिकता का दोष दिखाकर अन्य अपरिहार्य दोषों का उद्भावन निम्नोक्त रूप में होता है । प्रतिज्ञादि की अनुपपत्ति अलौकिकवाद को मानने पर शास्त्र (श्रुति) को प्रमाण माना जायेगा । शास्त्र रहित अन्य अनुभव आदि अप्रमाण होने के कारण अग्राह्य होंगे । अलौकिकवाद का आश्रय लेने पर जो भी प्रतिज्ञादि का प्रयोग करेंगे वे सब अनुपपन्न हो जायेंगे । पुनः यदि कोई अपना प्रतिपादन कौशल के आधार पर शास्त्र द्वारा यह सिद्ध करना चाहे कि वस्तु वैसी नहीं है जैसी लोक के द्वारा ग्राह्य है, तब प्रतिज्ञा यह बनेगी कि गृह्यमाण सामान्य आदि भी वैसे नहीं हैं जैसे ग्राह्य होते हैं । क्योंकि सर्वसर्वात्मकवाद में यह कहा जाय कि 'नित्यः शब्दः श्रोत्रग्राह्यत्वात्' तब भी ठीक नहीं है क्योंकि सर्वसर्वात्मक होने के कारण तब शब्द नेत्रादिग्राह्य भी होना चाहिए । यदि 'अनित्यः शब्दः' इस प्रतिज्ञा के आधार पर शब्द को अनित्य माना जाये तब भी विशेष एकान्तवाद के अनुसार अकारादि वर्ण भिन्नात्मक, क्षणिक, शून्य और निरूपाख्य होने के कारण परस्पर अपेक्षा के अभाववाला होता है । अतः सर्वभाव का अभाव होने के कारण जैसा ग्रहण होता है वैसा वह होता नहीं है । इस प्रकार 'शब्द: अनित्यः' प्रतिज्ञा की हानि होती है। प्रत्यक्ष विरोध दोष उपरोक्त तर्क बुद्धिवाद का आश्रय लेने पर और अनुभववाद या लोकवाद का तिरस्कार करने पर प्रत्यक्ष विरोध नामक दोष भी आयेगा । बुद्धिवादी का कहना है कि लोक के द्वारा ग्राह्य वस्तु तथा प्रकार की नहीं होती है । ऐसी प्रतिज्ञा करने पर सामान्यैकान्तवादी के मत में वस्तु केवल १. तथा च तत्र प्रतिज्ञादीनामाप्यनुपपत्तिः, यदि यथा लोकेन गृह्यते न तथा वस्तु, प्रतिज्ञा तावद् यथा गृह्यमाणा अविशेषादेर्न तथा स्यात् । ततश्चांशे प्रत्यक्षविरोधः, अंशेभ्युपगम विरोधः स्वोक्तविपर्ययरूपाभ्युपगमात् । वही, पृ० ५४-५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy