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द्वादशार- नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन
नहीं है । यदि वह अनुभूति से भिन्न किसी अन्य के द्वारा अनुभूत या ज्ञात है तो उसका प्रामाण्य किस आधार पर सिद्ध होगा ? पुनः यह भी प्रश्न उठता है कि लोक श्रुति पर आधारित है या श्रुति लोक पर आधारित है ? लोक श्रुति पर आधारित है इस कथन की अनुभव से सत्यता सिद्ध नहीं की जा सकती । अनुभव तो यही बताता है कि सारे शास्त्र लोक आश्रित हैं । समग्र शास्त्र सामान्य, विशेष, कारण, कार्य आदि अध्यारोपों द्वारा प्रणीत हैं । दूसरे शब्दों में शास्त्रबुद्धि विकल्प से भिन्न नहीं है एवं जो भी बुद्धि विकल्प हैं वे सत् के प्रतिपादक नहीं हो सकते। आ० मल्लवादी ने बौद्धिक ज्ञान और श्रुति की जिस अध्यारोपता या विकल्पात्मकता के आधार पर खण्डन किया है वह स्वयं भी समालोचना का विषय हो सकता है । क्योंकि जो अनुभवात्मक ज्ञान है वह भी अन्तोगत्वा प्रत्ययात्मक ही सिद्ध होता है । किन्तु लोकवाद या अनुभववाद में क्या त्रुटियाँ हैं इसकी चर्चा के पूर्व यह विचार करना होगा कि लोकवाद को अस्वीकार करने पर कौन-सी दार्शनिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं । आचार्य मल्लवादी के अनुसार अनुभववाद - लोकवाद को न माननेवाले के सामने भी अनेक प्रश्न उपस्थित होते हैं । लोकवाद को न मानने का मतलब है कि अलोकवाद का आश्रय लेना । आचार्य मल्लवादी वस्तु को अलौकिक माननेवाले के सामने अनेक दोषों का उद्भावन करते हैं ।
सर्वप्रथम तो वे यह प्रश्न उठाते हैं कि यदि आप लौकिकवाद का आश्रय नहीं लेते हैं तो अलौकिकवाद का आश्रय लेंगे आर्थात् अन्यत्र वस्तु का अन्य में अध्यारोप करेंगे। दूसरे शब्दों में घट में पाए जानेवाले घटत्व को घट में न मानकर अन्यत्र मानेंगे । ऐसा मानने पर आपको मृगतृष्णिकामृगमरीचिका को भी सत् मानना पड़ेगा । २ क्योंकि मरुभूमि में दिखाई देनेवाला जल वास्तविक जल नहीं है किन्तु अन्यत्र उपस्थित जल का वहाँ अध्यारोप
१. शास्त्रत्वादलोकत्वमिति चेतं, न, लोकाश्रयत्वात् तेषां शास्त्राणाम् ।
तानि ही शास्त्राणि सामान्यविशेषकारणकार्यमन्त्राणां सर्वत्राध्यारोपेण प्रणीतानि || द्वादशारं नयचक्रं, पृ० ५३
२. अन्यत्र दृष्टस्याध्यारोपाद् घटतत्त्ववदलौकिकत्वमिति चेत् न, व्यामोहस्य मृगतृष्णिकादिवदलौकिकत्त्वात्था |
वही ० पृ० ५४
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