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________________ २४ द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन है। क्योंकि पूर्वगत् श्रुत में नयों का विवरण विशेषरूप से था ही । और प्रस्तुत ग्रन्थ में पुरुष-नियति आदि कारणवाद की जो चर्चा है वह किसी लुप्त परम्परा का द्योतन तो अवश्य करती है। क्योंकि उन कारणों के विषय में ऐसी विस्तृत और व्यवस्थित चर्चा अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। आगे चलकर वह कहते हैं कि दृष्टिवाद की विषयसूची देखकर इतना तो निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि नयचक्र का जो दृष्टिवाद के साथ सम्बन्ध जोड़ा गया है वह निराधार नहीं है। इस प्रकार पूर्वोक्त चर्चा के आधार पर हम कह सकते हैं कि आचार्य मल्लवादी ने आगमोक्त परम्परा का अनुसरण करते हुए नूतन नयचक्र की रचना की होगी। नाम आचार्य मल्लवादी-कृत विवेच्य दार्शनिक ग्रन्थ का नाम द्वादशारनयचक्र है । इसको केवल नयचक्र के नाम से भी जाना जाता है । षड्दर्शनसमुच्चय की गुणरत्नसूरि-कृत बृहद्वृत्ति में नयचक्रवाल का उल्लेख प्राप्त होता है । अत: यह ग्रन्थ नयचक्रवाल के नाम से भी जाना जाता होगा ऐसा सम्भव है । किन्तु मुनिश्री जम्बूविजयजी के अनुसार नयचक्रवाल मूलग्रन्थ का नाम न होकर टीका का नाम होगा । मूल ग्रन्थ का नाम तो नयचक्र ही रहा होगा । 'वल संवरणे' (पाणिनि धातुपाठ) इसके अनुसार नयचक्र वलत इति नयचक्रवालः । इस प्रकार व्युत्पत्तिलब्ध अर्थ के अनुसार नयचक्र की टीका को ही नयचक्रवाल टीका ऐसा ही नामोल्लेख मिलता है । अत: यह निश्चित होता है कि नयचक्रवाल यह टीका का नाम रहा होगा और नयचक्र या द्वादशार नयचक्र मूलग्रन्थ का नाम रहा होगा ।५ ग्रन्थ में भी प्रकरण १. श्रीमद् राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ, पृ० १९८ २. वही. ३. श्वेताम्बराणां संमतिर्नयचक्रवालः स्याद्वादरत्नाकरो - । षडदर्शन समुच्यय टीका, पृ० ४०५. ४. श्री आत्मानन्द प्रकाश, वर्ष-४५, अं. ७, पृ० ११० ५. श्री आत्मानन्द प्रकाश, वर्ष-४५, अं-७, पृ० ११०-१११. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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