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जैन दार्शनिक परम्परा का विकास पद्मचरित:
__ आचार्य मल्लवादी द्वारा विरचित ग्रन्थों की सूची में यह तीसरा ग्रन्थ है। प्रभावक-चरित्रकार ने मल्लवादी द्वारा रचित ग्रन्थों का उल्लेख करते हुए पद्मचरित का भी उल्लेख किया है । साथ में यह भी बताया गया है कि पद्मचरित २४००० श्लोक प्रमाण संस्कृत काव्य है। किन्तु अन्य ग्रन्थों की तरह प्रस्तुत ग्रन्थ भी उपलब्ध नहीं है । इस प्रकार आ० मल्लवादी की कोई भी कृति हमें मूलरूप में उपलब्ध नहीं होती है । प्रस्तुत ग्रन्थ के नाम के आधार पर हम यह कल्पना कर सकते हैं कि इसमें राम और सीता का जीवन-वृत्तान्त दिया गया होगा । जैन परम्परा में रामचरित पद्मचरित के नाम से प्रचलित रहा है । जैसे कि प्राकृत भाषा-निबद्ध पउमचरियं (विमलसूरि), संस्कृत भाषा में निबद्ध पद्मचरित्र (रविषेण) एवं अपभ्रंश भाषाबद्ध पउमचरिउं (स्वयम्भू) । यदि इसमें राम का चरित्र ही वर्णित हो तो यह भी कह सकते हैं कि प्रस्तुत ग्रन्थ संस्कृत भाषा में निबद्ध प्रथम रामचरित्र हो सकता है किन्तु यह तो कोरी कल्पना ही है क्योंकि प्रस्तुत ग्रन्थ अद्यावधि उपलब्ध नहीं हो पाया है। प्रो० हीरालाल कापडिया का कहना है कि अन्य किसी ठोस प्रमाण के अभाव में यह भी निर्णय करना कठिन है कि पदमचरित नयचक्रकार आ० मल्लवादी की ही कृति है या अन्य मल्लवादी की कृति है ।
इस प्रकार साहित्यिक प्रमाणों के आधार पर हमें उपरोक्त तीन ग्रन्थों के विषय में विवरण प्राप्त होता है । एक अन्य कृति न्यायबिन्दु टिप्पण भी मल्लवादी की कृति है किन्तु टिप्पणकार एवं नयचक्रकार मल्लवादी भिन्न हैं। प्रसंगोपात्त उसके विषय में यहाँ कुछ ज्ञातव्य है ।
मल्लवादी कृत धर्मोत्तर-टिप्पण
न्यायबिन्दु की धर्मोत्तर टीका का टिप्पण मल्लवादी आचार्य ने लिखा है। उसकी प्रतियाँ जैसलमेर तथा पाटण के ग्रन्थ भन्डारों में विद्यमान हैं ।
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१. प्रभावकचरित्र, पृ० १२३. २. वही, पृ० १२३. ३. श्री हरिभद्रसूरि. पृ० ३०३.
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