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द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन मल्लवादी नामक अन्य आचार्य
उपरोक्त दो ग्रन्थों के अतिरिक्त धर्मोत्तरटिप्पनक नामक ग्रन्थ आचार्य मल्लवादी के नाम से प्राप्त होता है । किन्तु प्रस्तुत मल्लवादी नयचक्रकार मल्लवादी से भिन्न हैं । इस विषय में मुनिश्री कल्याणविजयजी का कहना है कि-अल्लराजा की सभा के वादी श्री नन्दक गुरु के कहने से मल्लवादी के ज्येष्ठ भ्राता जिनयश ने प्रमाणग्रन्थ बनाया था । किन्तु उक्त अल्लभूप वर्धमानसूरि कालीन भुवनपाल के पिता अल्लराजा विक्रम की दसवीं शती में विद्यमान होने चाहिएँ तथा अभयदेवसूरि के गुरु प्रद्युम्नसूरि ने अल्लराजा की सभा में दिगम्बराचार्य को पराजित किया था ऐसा उल्लेख मिलता है । इस तरह आचार्य प्रद्युम्नसूरि के समकालीन अल्लराजा का अस्तित्व दसवीं शती में सिद्ध होता है । विशेष आचार्य सिंहसूरि के प्रबन्ध में मल्लवादी के बौद्ध विजय को सूचित करनेवाली एक आर्या मिलती है । तदनुसार मल्लवादी ने वीर निर्वाण संवत् ८८४ वि० सं० ४१४ में बौद्धों को पराजित किया ।२ इस तरह मल्लवादी को विक्रम की पाँचवीं शती में हुए मानने पर उसके भाई अल्लराजा के वादी श्री नन्दक के समकालीन संभवित नहीं हैं । इन परस्पर विरोधात्मक बातों को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि नयचक्रकार आचार्य मल्लवादी और धर्मोत्तर टिप्पणकार मल्लवादी भिन्न हैं । बौद्ध आचार्य श्री लघुधर्मोत्तर का समय विक्रम संवत् ५०८ का माना जाता है अतः उनके ग्रन्थ के ऊपर टिप्पण लिखनेवाले आचार्य मल्लवादी का समय निश्चय ही दशवीं शती के अन्त में संभवित होता है । अत: हमें यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि लघुधर्मोत्तर टिप्पणकार आचार्य मल्लवादी और नयचक्रकार मल्लवादी भिन्न हैं ।
१. प्रभावकचरित्र, प्रस्तावना, पृ० ५६-५७ २. श्रीवीरवत्सरादथ शताष्टके चतुरशीतिसंयुक्ते । जिग्ये स मल्लवादी बौद्धांस्तव्यन्तरांश्चापि ॥ ८३ ।।
प्रभावकचरित्र- विजयसिंहसूरिचरित में । ३. प्रभावकचरित्र, प्रस्तावना, पृ० ५७.
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