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________________ उपसंहार १९३ प्रारम्भ में पाई जाती है । आ० मल्लवादी का वैशिष्ट्य यह है कि उन्होंने इन सभी वादों की तार्किक समीक्षा की है और इनकी ऐकान्तिकता को स्पष्ट किया है । यद्यपि अपनी तटस्थ दृष्टि के कारण आ० मल्लवादी ने स्पष्ट रूप से किसी भी एक का पक्ष नहीं लिया है फिर भी जैन चिन्तन से प्रभावित होने के कारण कर्मवाद में इन सबका समन्वय देखा है । चतुर्थ अध्याय-ईश्वर की अवधारणा प्रस्तुत शोधप्रबन्ध के चतुर्थ अध्याय में हमने न्यायदर्शन की ईश्वर की सृष्टि कर्तृत्व की अवधारणा को प्रस्तुत किया है । आ० मल्लवादी ने न्यायदर्शन की ईश्वर की अवधारणा का चित्रण द्वादशार नयचक्र के तीसरे अर में किया है । साथ ही उन्होंने अपने ग्रन्थ के चतुर्थ अर में ईश्वर के सृष्टि कर्तृत्व की समीक्षा भी प्रस्तुत की है । इस सम्बन्ध में आ० मल्लवादी का दृष्टिकोण स्पष्ट है । एक ओर वे ईश्वर की सृष्टिकर्तृत्व की अवधारणा का अस्वीकार करते हैं किन्तु दूसरी ओर यह कहकर की प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्म का कर्ता है और कर्म के कर्ता के रूप में वह अपने भावी का निर्माता या सृष्टिकर्ता है और इसीलिए वह सृष्टिकर्ता भी है । इस प्रकार आ० मल्लवादी ने ईश्वर के सृष्टि-कर्तृत्व की अवधारणा का जैनदर्शन के कर्मवाद से समन्वय किया है । अपने अध्ययन के क्रम में हमने यह पाया है कि आचार्य हरिभद्रसूरि ने अपने शास्त्रवार्ता-समुच्यय में ईश्वर के सृष्टि-कर्तृत्व का जैनदर्शन के साथ समन्वय किया था । इसका अर्थ यह है कि आ० हरिभद्र आ० मल्लवादी के चिन्तन से प्रभावित थे । पञ्चम अध्याय-सत् के स्वरूप की समस्या प्रस्तुत शोधप्रबन्ध के पञ्चम अध्याय में हमने सत के स्वरूप के सम्बन्ध में विचार किया है । अपने अध्ययन के क्रम में हमने यह पाया कि आ० मल्लवादी ने अपने ग्रन्थ द्वादशार नयचक्र के विभिन्न अरों में सत् सम्बन्धी विभिन्न अवधारणाओं जैसे नित्यवाद, अनित्यवाद, नित्यानित्यवाद आदि का प्रस्तुतीकरण किया । उन्होंने नित्यवाद की समीक्षा अनित्यवाद के माध्यम से और अनित्यवाद की समीक्षा नित्यवाद के द्वारा की है। नित्यवाद Jain Education International . For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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