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द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन स्थानांग तथा समवायांगसूत्र
इन दोनों अंग आगमों में तत्त्वसंख्या का विवेचन किया गया है । इनमें ज्ञान, प्रमाण, नय, निक्षेप आदि का संक्षेप में संग्रह किया गया है, तथा प्रभेदों का उल्लेख किया है। किन्तु विशेष विवेचन उपलब्ध नहीं होता है ।
भगवतीसूत्र
इस पञ्चम अंग-आगम में अनेक विषयों की चर्चा उपलब्ध होती है । गौतमस्वामी (भगवान् महावीरस्वामी के शिष्य) प्रश्न करते हैं और भ० महावीर उसके उत्तर देते हैं । प्रश्नोत्तर शैली में उपलब्ध प्रस्तुत ग्रन्थ में जीव का स्वरूप, पुद्गल का स्वरूप, अस्ति-नास्ति अवक्तव्यवाद, जगत् के स्वरूप आदि के विषय में चर्चा उपलब्ध होती है । क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद एवं विनयवाद का वर्णन भी प्राप्त होता है तथा नियतिवादी गोशालक के विषय में भी विशेष चर्चा प्राप्त होती है । इस प्रकार प्रस्तुत अंग-आगम में अनेक दार्शनिक चर्चाएँ प्राप्त होती हैं।
नन्दीसूत्र
अपेक्षाकृत यह परवर्ती आगम है । इसमें जैनदर्शन मान्य पाँच ज्ञानमतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञा, मन:पर्यवज्ञान तथा केवलज्ञान विषयक विस्तृत विवरण प्राप्त होता है।
अनुयोगद्वारसूत्र
प्रस्तुत आगम में प्रमाण, नय एवं निक्षेप की व्याख्या एवं उसके भेदों के विषय में विवरण प्राप्त होता है ।
प्रज्ञापनासूत्र
प्रस्तुत आगम में आत्मा तथा आत्मा के ज्ञान विषयक चर्चा उपलब्ध होती है।
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