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________________ उपसंहार १९१ प्रथम अध्याय-जैन दार्शनिक परम्परा का इतिहास, आ० मल्लवादी और उनका ग्रन्थ. ग्रन्थ के साथ इस ग्रन्थ के ग्रन्थकार के व्यक्तित्व और कृतित्व का अध्ययन भी आवश्यक होता है । इस सन्दर्भ में हमारा निष्कर्ष यह है कि मल्लवादी क्षमाश्रमण सिद्धसेन के पश्चात् जैन परम्परा के प्रमुख तार्किक एवं वादी हैं । सिद्धसेन के पश्चात् जो तार्किक जैन परम्परा में हुए हैं उनमें श्वेताम्बर परम्परा में प्रथम नाम आ० मल्लवादी क्षमाश्रमण का एवं दिगम्बर परम्परा में प्रथम नाम आचार्य समन्तभद्र का आता है। इस दृष्टि से जैनदर्शन को तर्कयग में प्रवेश दिलानेवाले आ० मल्लवादी क्षमाश्रमण एक महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं । यद्यपि आ० मल्लवादी क्षमाश्रमण के काल का निर्धारण एक कठिन समस्या है किन्तु इस सम्बन्ध में विद्वानों का जो प्रयास हुआ है उसी के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि मल्लवादी क्षमाश्रमण ईसा की पाँचवीं शती के आचार्य हैं । ये जैनधर्म की श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध रहे हैं इस सम्बन्ध में कोई संदेह नहीं है । इनके ग्रन्थ की टीका में इन्हें सितपट्ट कहा गया है । अत: इनके जैनधर्म की श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के सम्बन्ध में कोई विवाद नहीं है। जहाँ तक आ० मल्लवादी की कृतियों का सवाल है उनकी तीन कृतियों का उल्लेख मिलता है । किन्तु दुर्भाग्य से आज उनकी एक भी कृति उपलब्ध नहीं है। किन्तु निश्चित है कि इनकी ये कृतियाँ ग्यारहवीं शती तक उपलब्ध थीं । जहाँ तक उनकी कृतियों के नष्ट होने के कारणों का सवाल है हम स्पष्ट रूप से इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि आ० मल्लवादी की गम्भीर दार्शनिक शैली और ग्रन्थ का नय का सम्बन्धित प्रचलित परम्परा से भिन्न होना ही ऐसे कारण थे जिनसे इन ग्रन्थों के अध्ययन की परम्परा जीवित नहीं रही और इन ग्रन्थों पर परवर्ती काल में कोई टीका आदि भी नहीं रची गई। द्वितीय अध्याय-अनुभव और बुद्धिवाद की समस्या इस शोधप्रबन्ध के दूसरे अध्याय में हमने अनुभववाद और बुद्धिवाद के सन्दर्भ में विचार किया है । यह एक सुस्पष्ट तथ्य है कि अनुभववाद और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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