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________________ द्वादशार- नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन अपोहवाद शब्दाद्वैतवाद/ जातिवाद सामान्य- विशेषवाद वक्तव्य -अवक्तव्यवाद क्षणिकवाद शून्यवाद / विज्ञानवाद इसकी विशेषता यह है कि प्रत्येक 'अर' (अध्याय) किसी एक दार्शनिक मतवाद का प्रस्तुतीकरण करता है फिर दूसरे अर के आदि में उस दार्शनिक मत की समीक्षा प्रस्तुत की जाती है और उसके विरोधी मतवाद का उद्भावन करके उसका विधान किया जाता है । इस प्रकार क्रम से एक दर्शन की समीक्षा के आधार पर दूसरे दर्शन की उद्भावना करके इस ग्रन्थ में समस्त भारतीय दर्शनों को एक चक्र के रूप में सुनियोजित एवं प्रदर्शित किया गया है । इन सब में जैनदर्शन की भूमिका को एक तटस्थ दृष्टा के रूप में रखा गया है । उसमें नित्यवाद का खण्डन अनित्यवाद से और अनित्यवाद का खण्डन नित्यवाद से करवा कर यह स्पष्ट किया गया है कि उन मान्यताओं में क्या कमियाँ हैं । किन्तु नयचक्र की यह भी विशेषता है कि वह मात्र एक पक्ष का खण्डन ही दूसरे पक्ष से नहीं करवाता है अपितु पूर्व पक्ष में जो गुण है उसे स्वीकार भी करता है । विभिन्न जैनेतर दर्शनों को ही नय मानकर इस ग्रन्थ की रचना हुई है । इस ग्रन्थ के वैशिष्ट्य के संबन्ध में पं० दलसुखभाई मालवणिया का कथन है कि इस ग्रन्थ में जैनेतर मन्तव्य जो लोक में प्रचलित थे उन्हीं को नय मानकर उनका संग्रह विविध नय के रूप में किया गया है और यह सिद्ध किया गया है कि जैनदर्शन किस प्रकार सर्वनयमय है । १९० उभयोभयम् उभयनियमः ९. नियमः १०. नियमविधिः ११. नियमोभयम् १२. नियम-नियमः ७. ८. प्रस्तुत अध्ययन के अग्रिम अध्यायों में हमने नयचक्र में उपस्थित विभिन्न दार्शनिक मतवादों की दार्शनिक समस्याओं के आधार पर आधुनिक दृष्टि से प्रस्तुत किया है और भारतीय दर्शन की प्रमुख समस्याओं के संदर्भ में ही ग्रन्थ का अध्ययन किया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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