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________________ १८८ द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन की दृष्टि को लेकर आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने जिस परम्परा को प्रस्तुत किया था, हमारे आलोच्य ग्रन्थ द्वादशार नयचक्र में मल्लवादी क्षमाश्रमण (५वीं शती) के द्वारा उसी दृष्टिकोण को संपोषित किया गया । प्रस्तुत ग्रन्थ और ग्रन्थाकार के वैशिष्ट्य को स्थापित करते हुए जैनविद्या के मूर्धन्य विद्वान पं० दलसुखभाई मालवणिया ने लिखा है कि"भगवान् महावीर के बाद भारतीय चिन्तन में तात्विक दर्शनों की बाढ़ आ गई थी। सामान्यतया यह कह देना कि सभी नयों (दर्शनों), मन्तव्यों, मतवादों का समूह अनेकान्तवाद है, यह एक बात है किन्तु उन मन्तव्यों को विशेष रूप से विचारपूर्वक अनेकान्तवाद के व्यापक परिप्रेक्ष्य में स्थापित करना यह दूसरी बात है । यह महत्त्वपूर्ण कार्य यदि किसी जैन दार्शनिक ने किया तो उनमें प्रथम नाम आचार्य मल्लवादी क्षमाश्रमण (ई० सन० ५वीं शती) का है । ग्रन्थ और ग्रन्थकार की इसी विशेषता को दृष्टि में रखकर इस ग्रन्थ को अपनी गवेषणा का विषय बनाया था । आचार्य मल्लवादी क्षमाश्रमण ने द्वादशार नयचक्र में अपने अनुपम दार्शनिक पाण्डित्य का परिचय तो दिया ही है किन्तु उनके साथ-साथ उन्होंने भारती दार्शनिक इतिहास की एक अपूर्व सामग्री को आगामी पीढ़ी के लिए छोड़ा भी है ।" उन्होंने समीक्षात्मकसमन्वय की दार्शनिक पद्धति प्रदान की है वह उनका भारतीय दर्शन के क्षेत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण अवदान है । किन्तु भारतीय दर्शन का यह दुर्भाग्य था कि आचार्य मल्लवादी का यह महत्त्वपूर्ण दार्शनिक ग्रन्थ कालक्रम में नष्ट हो गया; मात्र उसकी आचार्य सिंहसेनसरि की एक टीका ही उपलब्ध हो सकी । किन्तु उस टीका में ग्रन्थ के अंशों की व्याख्या ही थी, सम्पूर्ण ग्रन्थ उस टीका ग्रन्थ में भी उपलब्ध नहीं था । अतः उस टीका के आधार पर भी मूल ग्रन्थ को पुनः व्यवस्थित करना एक दुरूह कार्य था । पूज्य मुनि जम्बूविजयजी ने इस दुरूह कार्य को हाथ में लिया और तिब्बती भाषा में अनुदित प्राचीन बौद्ध ग्रन्थों में प्रस्तुत ग्रन्थ के जो-जो अंश उपलब्ध हो सके उनका अध्ययन करके, इस ग्रन्थ को व्यवस्थित किया । मल्लवादी के इस ग्रन्थ में अनेक लुप्त ग्रन्थों के उद्धरण एवं लुप्त दार्शनिक वादों की समीक्षा है, जो दर्शन के इतिहास की दष्टि से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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