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________________ शब्दार्थ सम्बन्ध की समस्या १६१ का स्वीकार करना चाहिए यह अनुभवगम्य भी है। तत्त्वार्थसूत्र भाष्य में शब्द की व्याख्या करते हुए कहा है कि जैसा अर्थ है उसी तरह का कथन करना शब्द है । इससे भी यह स्पष्ट होता है कि शब्द और अर्थ भिन्न-भिन्न हैं । अभिजल्प को ही शब्दार्थ मानना युक्तिसंगत नहीं है । इस विषय में ऊपर कहा गया है । अतः यह सिद्ध होता है कि शब्द से भिन्न अर्थ है ।२ भारतीय चिन्तन में शब्द और अर्थ के सम्बन्ध को लेकर यह जो विरोधी दृष्टिकोण बने डॉ० सागरमल जैन के अनुसार उसके मूल में अर्थ का अर्थ न समझने की भ्रान्ति रही हुई है । संस्कृत भाषा का अर्थ शब्द एक ओर पदार्थ का वाचक माना जाता है तो दूसरी ओर वह अर्थ शब्द के अर्थ अर्थात् वाच्यार्थ का वाचक माना जाता है । यहाँ एक ही अर्थ शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त होता है । एक अर्थ में वह वस्तु को सूचित करता है तो दूसरी ओर तात्पर्य को । जब बौद्ध दार्शनिक यह कहता है कि शब्द अर्थ का स्पर्श नहीं करते तो अर्थ से उनका तात्पर्य वस्तु से होता है । किन्तु उसके विपरीत मीमांसक शब्द और अर्थ में तादात्म्य सम्बन्ध मानते हैं, अर्थ से उनका प्रयोजन शब्द के तात्पर्य से होता है । अत: दोनों ही मत पूर्णतया असंगत तो नहीं कहे जा सकते क्योंकि यह सत्य है कि शब्द और उनके वाच्य विषय में एक भिन्नता होती है । अग्नि शब्द अग्नि नामक वस्तु से भिन्न है किन्तु यह भी सत्य है कि शब्द और उनके तात्पर्य में एक तादात्म्य या अभिन्नता होती है। यही कारण था कि जैन दार्शनिकों ने शब्दार्थ सम्बन्ध की चर्चा करते हुए उन्हें कथञ्चित् भिन्न और कथञ्चित् अभिन्न माना है । यदि अर्थ से हम वस्तु या पदार्थ को ग्रहण करते हैं तो वह शब्द से भिन्न होता है। किन्तु अर्थ से हम तात्पर्य का ग्रहण करते हैं तो वह शब्द से अभिन्न होता है । इसलिए शब्दार्थ सम्बन्ध को लेकर कथञ्चित् भिन्नता और अभिन्नता को लेकर जो जैन अवधारणा है वह अधिक युक्तिसंगत और अनुभूति के स्तर पर सत्य प्रतीत होती है। तत्त्वार्थभाष्य० १. ३५. १. यथार्थाभिधानं च शब्दः । २. द्वादशार नयचक्रं, पृ० ५९४. ३. जैनभाषादर्शन-परिशिष्ट 'क' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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