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________________ १३८ द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन का कहना है कि सामान्य काल्पनिक है, सत् विशेष रूप है । इस प्रकार भारतीय दर्शन में सत्ता सामान्य है या विशेष इस प्रश्न को लेकर वेदान्त और बौद्ध दर्शन परस्पर भिन्न दृष्टिकोण रखते हैं । अन्य भारतीय दार्शनिकों ने या तो इन दोनों मतों का समन्वय करने का प्रायस किया है या फिर सत्ता में दोनों पक्षों को एक-दूसरे से स्वतन्त्र स्वीकार किया है। पं० दलसुखभाई मालवणिया ने भारतीय दार्शनिकों के सामान्य और विशेष के सन्दर्भ में निम्न पाँच दृष्टिकोणों का उल्लेख किया है - १. बौद्धों का अवस्तुरूप सामान्यवाद (काल्पनिक सामान्यवाद) २. वैशेषिकों का भिन्नसामान्यवाद ३. सांख्यों का अभिन्नसामान्यवाद ४. मीमांसकों का भिन्नाभिन्न सामान्यवाद ५. जैनों का अनेकान्तात्मक सामान्यवाद पण्डितजी के अनुसार, चार्वाकों का सामान्य के सन्दर्भ में क्या दृष्टिकोण था ? इसका निर्णय करना कठिन है क्योंकि उनके एकमात्र उपलब्ध ग्रन्थ तत्त्वोपप्लव में भिन्न, अभिन्न और भिन्नाभिन्न इन तीनों पक्षों को लेकर सामान्य का खण्डन किया गया है । हमारे आलोच्य ग्रन्थ द्वादशार-नयचक्र में भी इसी प्रकार सामान्य के भिन्न, अभिन्न और भिन्नाभिन्न इन तीनों प्रकारों का खण्डन पाया जाता है । वस्तुत: सामान्य का खण्डन करने की यह शैली बौद्ध-तर्कों के आधार पर खड़ी हुई है । बौद्ध दार्शनिक सामान्य को काल्पनिक मानते हैं। उनके अनुसार सामान्य मात्र प्रतीति है, हमें जो जाति की प्रतीति होती है वह वस्तुतः सामान्य नहीं अपितु अतद् व्याकृति या अन्यापोह ही है । बौद्धों के अनुसार संज्ञा भेदरूप है। उसमें एकरूपता की अनुभूति तो १. न्यायावतारवातिकवृत्ति० पृ० २५१ २. वही० पृ० २५० ३. वही० पृ० २५० ४. द्वादशारं नयचक्रं, पृ० ११-२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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