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________________ अष्टम अध्याय सामान्य और विशेष की समस्या सत्ता के दो पक्ष माने गए हैं । एक सामान्य और दूसरा विशेष । सामान्य सत्ता का वह पक्ष है जो उसे एक वर्ग में समाहित करता है। दूसरे शब्दों में वह व्यष्टियों में अनुस्यूत एकता या जाति का वाचक है । दूसरी ओर विशेष वह पक्ष है जो सत्ता के विविध रूपों को एक-दूसरे से पृथक् करता है ।२ सत्ता सामान्य है या विशेष इस प्रश्न को लेकर भारतीय दार्शनिकों में विविध दृष्टिकोण पाए जाते हैं। भारतीय चिन्तन में वेदान्त ने सत्ता को सामान्य माना और विशेष को मात्र प्रतीति या व्यवहार कहा ।३ इसी प्रकार शब्दाद्वैतवादी भर्तृहरि आदि भी सत्ता को स्वरूपतः सामान्य ही मानते हैं ।४ संक्षेप में कहें तो बौद्धों के अतिरिक्त जो भी अभेदवादी विचारक हैं उनके अनुसार सत्ता सामान्य ही है। इस सामान्यवाद के विरोध में बौद्ध दार्शनिकों या समानां बुद्धि प्रसूते भिन्नेश्वधिकरणेषु यया बहूनीतरेतरतो न व्यावर्तन्ते यो ोनेकत्र प्रत्ययानुवृत्तिनिमित्तं तत्सामान्यम् । न्यायदर्शनम्, वात्स्या० २.२.७१ अन्योन्याभावविरोधिसामान्यरहितः समवेतः पदार्थ विशेषः । सर्व० पृ० २१७ औलू० विशेष: अत्यन्तव्यावृत्ति हेतुः न्यायकोशः पृ० ७८४ ३. वेदान्तवादिना च सामान्यमेव विषयो द्वयोः आत्माद्वैततया सर्वस्य एकत्वात् । उद्धृत न्यायावतारवातिकवृत्ति० पृ० २५४ ४. अनुविद्धैकरूपत्वाद् वीचीबुद्रुदफेनवत् । वाचः सारमपेक्षन्ते शब्दब्रह्मोदकाद्वयम् । स्याद्वाद, पृ० ९१, वही., पृ० २५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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