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________________ क्रियावाद-अक्रियावाद १२७ का त्याग किए बिना ही मात्र आर्यतत्त्व को जानकर ही आत्मा सभी दुःखों से छूट जाती है, लेकिन बन्धन और मुक्ति के सिद्धान्त में विश्वास करनेवाले ये विचारक संयम का आचरण नहीं करते हुए केवल वचनों से ही आत्मा को आश्वासन देते हैं । पुनः कहा गया है कि अनेक भाषाओं एवं शास्त्रों का ज्ञान आत्मा की शरणभूत नहीं होता । मन्त्रादि विद्या भी उसे कैसे बचा सकती है ? असद् आचरण में अनुरक्त अपने आपको पण्डित माननेवाले लोग वस्तुत: मूर्ख ही हैं ।२ आवश्यक नियुक्ति में कहा गया है कि आचार विहीन अनेक शास्त्रों के ज्ञाता भी संसार-समुद्र से पार नहीं होते । मात्र शास्त्रीय ज्ञान से, बिना आचरण से कोई मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। जिस प्रकार निपुण चालक भी वायु या गति की क्रिया के अभाव में जहाज को इच्छित किनारे पर नहीं पहुंचा सकता वैसे ही ज्ञानी आत्मा भी तप-संयम रूप सदाचरण के अभाव में मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता । मात्र जान लेने से कार्य-सिद्धि नहीं होती । तैरना जानते हुए भी कोई कायचेष्टा नहीं करे तो डूब जाता है, वैसे ही शास्त्रों को जानते हुए भी जो धर्म का आचरण नहीं करता, वह डूब जाता है। जैसे चन्दन ढोनेवाला चन्दन से लाभान्वित नहीं होता, मात्र भार-वाहक ही बना रहता है वैसे ही आचरण से हीन ज्ञानी ज्ञान के भार का वाहक मात्र है, इससे उसे कोई लाभ नहीं होता । १. इहमेगे तु मन्नंति अपच्चक्खाय पावगं । आयरियं विदित्ता णं सव्वदुक्खा विमुच्चई ।। मणंता अकरेंता य बंध-भोक्खपइन्निणों । वायाविरिपमेत्तेणं समासासेंति अप्पयं ॥ उत्तराध्ययनसूत्र-६.८-९ २. न चित्ता तायए भासा, कुओ विज्जाणुसासणं ? विसंत्रा पावकम्मेहिं बाला पंडियमाणिणो ॥ वही० ६-१० ३. जह छेयलद्वनिज्जामओ वि, वाणियगइच्छियं भूमि । वाएण विणा पोओ, न चएई महण्णवं तरिउं ॥ तह नाणलद्वनिज्जामओ वि, सिद्धिवसहिं न पाउणइ । निउणो वि जीवपोओ, तवसंजममारुअविहूणो ॥ संसारसागराओ, उब्बुड्डो मा पुणो निबुड्डिज्जा । चरणगुणविप्पहीणो, बुड्डुइ सुबहुपि जाणंतो ॥ आवश्यकनियुक्ति० ९५-९७, पृ० १० ४. जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी न हु चंदणस्स । एवं खु नाणी चरणेण हीणो, नाणस्स भागी न हु सोग्गईए। वही० श्लोक० १००, पृ० ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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