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________________ १२६ द्वादशार- नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन शीलांक ने सूत्रकृतांग की टीका में स्पष्ट लिखा है कि संयम ग्रहण करके और आचार मार्ग का पालन करने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । दूसरे शब्दों में क्रिया के द्वारा ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । इसको स्पष्ट करते हुए पुनः उन्होंने सूत्रकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के तृतीय अध्ययन की टीका में लिखा है कि ज्ञानादि से रहित क्रिया ही एकमात्र स्वर्ग या अपवर्ग का साधन है, ऐसा माननेवाले ही क्रियावीद हैं ।२ क्रियावाद को मिथ्यादर्शनों के वर्ग में समाहित किया जाता है । ३ क्योंकि वह ज्ञान की उपेक्षा करके मात्र क्रिया से ही स्वर्ग या अपवर्ग की प्राप्ति को मान्य करता है । जैन दार्शनिकों का क्रियावाद को मिथ्यादर्शन के वर्ग में समाहित करने का जो कारण है वह उसका एकान्त रूप से क्रिया को ही मोक्ष मार्ग मान लेना है । जैनदर्शन एकान्तवाद का विरोधी है और एकान्तवादी दृष्टिकोण को मिथ्या मानते हैं । इस प्रकार क्रियावाद को स्पष्ट किया है । सूत्रकृतांग में कहा गया है कि न मात्र ज्ञान से मुक्ति होती है और न ही मात्र क्रिया से मुक्ति होती है । क्रिया आवश्यक है किन्तु उसका ज्ञान से युक्त होना उतना ही आवश्यक है । ४ ज्ञान से रहित क्रिया और क्रिया से रहित ज्ञान दोनों ही मोक्ष के साधन नहीं माने गए हैं । इस सम्बन्ध में आगमिक साहित्य में विस्तृत चर्चा उपलब्ध होती है । यहाँ हम उसे अति संक्षेप में प्रस्तुत करेंगे । उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि कुछ विचारक मानते हैं कि पाप १. वही, श्रु० ६ अ० । २. ज्ञानादिरहितां क्रियामेकामेव स्वर्गापवर्ग साधनत्वेन वदितुं शीलवत्सु । सूत्र० २ श्रु० ३ अ० । ३. तत्र सम्यग्दर्शनात् विपरीतं मिथ्यादर्शनम् । तद्द्द्विविधम् अभिगृहीतमनभिगृहीतं च । तत्राभ्युयेत्यासम्यग्दर्शनपरिग्रहः अभिगृहीतमज्ञानिकादीनां त्रयाणां त्रिषष्ठीनां कुवादिशतानां, शेषमनभिगृहीतम् । तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्, स्वोयज्ञभाष्य - टीकालङ्कृतम्, पृ० १२२ ४. ये यावि बहुस्सुए सिया, धम्मिए माहणो भिक्खुए सिया । अभिनूमकडेहिं मुच्छिए, तिव्वं से कम्मेहिं किच्चती ॥ अह पास विवेगमुट्ठिए, अवितिण्णे इह भासती ध्रुवं । णाहिसि आरं कतो परं, वेहासे कम्मेहिं किच्चती ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only • सूत्रकृतांगसूत्र ० २ १, ७-८ www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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