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द्वादशार- नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन
भी उल्लेख मिलते हैं । विशेषरूप से सर्वप्रथम आचार्य सिद्धसेन गणि ने तत्त्वार्थसूत्र भाष्य की टीका में इन विभिन्न वर्गों के आन्तरिक भेदों एवं उनके प्रतिपादक आचार्यों का वर्णन किया है । दिगम्बर परम्परा में भी धवला टीका और अंग प्रज्ञप्ति में उन्हीं के आधार पर इन वर्गों एवं उनके आचार्यों का वर्णन किया है ।
जहाँ तक समालोच्य ग्रन्थ द्वादशार - नयचक्र का प्रश्न है इस ग्रन्थ में आचार्य मल्लवादी ने अज्ञानवाद और क्रियावाद का उल्लेख किया है । ३ द्वादशार- नयचक्र की टीका में सिंहसेन सूरि इन चारों वर्गों का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि जो सात प्रसिद्ध नय हैं उनके एक-एक के सौ-सौ भेद करके सात सौ भेदों का उल्लेख आर्ष-दर्शनों में मिलता है । उन्हीं को संक्षेप में क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद एवं विनयवाद ऐसे चार विभागों में विभाजित किया गया है । यहाँ ज्ञातव्य है कि जहाँ आगमिक परम्परा इन चार वर्गों का उल्लेख करके इनमें क्रियावादियों के १८० भेद, अक्रियावादियों के ८४, अज्ञानवादियों के ६७, तथा विनयवादियों के ३२ प्रकारों का उल्लेख करके
१. तत्र क्रियावादिनो शीत्युत्तरशतभेदाः मरीचि - कुमार - कपिलो ल्लक- गार्ग्य-व्याघ्रभूतिबाद्वलि - माठर-मौद्गल्यायन प्रभृत्याचार्य प्रतीयमान प्रक्रिया भेदाः ।
अक्रियावादिनो पि चतुरशीतिविकल्पाः कोकुल-काण्ठेविद्धि-कौशिक - हरिश्मश्रुमान्यधनिक- रोमक- हारित - मुण्डा - श्वलायनादि स्वरि प्रथितप्रक्रियाकलापाः । वैनयिकास्तु द्वात्रिंशद्विकल्पाः वसिष्ठ - पराशर जातूकर्ण - वाल्मीकि रोमहर्षणि सत्यदत्तव्यासेलापुत्रौ - - पमन्य - चन्द्रदत्ता -यस्थूल प्रभृतिभिराचार्यैः प्रकाशित विनय साराः । शाकल्य- बाष्कल - कुथुमि- सात्यमुग्रि-राणायन - कः - मध्यन्दिनमोद - पिप्पलाद्- बादरायण-स्विष्टकृद्-नि- कात्यायन- जैमिनी - वसुप्रभृतयः सूरयो सन्मार्गमेनं प्रथयन्ति ।
- तत्त्वार्थाधिगमसूत्र- स्वोपज्ञभाष्य टीकालङ्कृतम्, द्वितीय भागः पृ० १२३ २. अंग पण्णत्ति, पृ० ४४-४६
३. द्वादशारं नयचक्रं प्रथम द्वितीय अर
४. नयानामेकैकस्य शतधा भेदात् सप्तनयशतानि आर्षे व्याख्यायन्ते तेषां पुनश्चतुर्धा संक्षेपः क्रिया क्रिया- क्रिया- ज्ञान - विनयवाद समवसरण - वचनात् तत्रोक्तः । द्वादशारं नयचक्रं टीका, पृ० १११-११२
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