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________________ ८७ ईश्वर की अवधारणा बुद्धिमान कर्ता के बनाए हुए होने चाहिएँ । अतः जो कोई इन सब पदार्थों का कर्ता है वही इश्वर है । ईश्वर की सिद्धि में एक अन्य अनुमान का भी प्रयोग किया गया है जिसे आयोजन द्वयणुक जनक क्रिया हेतुक अनुमान कहा जाता है । इसी अनुमान के आधार पर द्वादशारनयचक्र में ईश्वर की सिद्धि की गई है । सृष्टि के प्रारम्भकाल में होनेवाले द्वयणुक की उत्पत्ति जिस परमाणु-कर्म से होती है वह कर्म प्रयत्नजन्य है। क्योंकि वहाँ एक कर्म है। जो भी कर्म होता है, वह सब प्रयत्नजन्य होता है । जैसे अस्मदादि के शरीर में होनेवाला कर्म । इसका आशय यह है कि सृष्टि के आरम्भ में जब द्वयणुक की उत्पत्ति होती है तब जिन परमाणुओं के संयोग से द्वणयुक की उत्पत्ति होती है उन परमाणुओं में से किसी एक परमाणु में ईश्वर के प्रयत्न से कर्म उत्पन्न होता है और उससे दूसरे परमाणु के साथ संयोग की क्रिया होती है । यदि ईश्वर का अस्तित्व न माना जायेगा तो दो परमाणुओं में संयोग उत्पन्न करनेवाला कर्म न हो सकेगा । इस प्रकार ईश्वर की सिद्धि होती है ।३ न्यायसूत्र में कहा गया है कि पुरुष जो कर्म करता है उसका फल अवश्य भोगता है ऐसा नहीं है । कभी-कभी पुरुष अच्छे कर्म करता है फिर १. उर्वीपर्वतर्वादिकं सर्वं, बुद्धिमत्वर्कर्तृकं, कार्यत्वात्, यत्, कार्यं तत्तत्सर्वं बुद्धिमत्कर्तृकं, यथा घटः, तथा वेदं, तस्मात् तथा, व्यतिरेके व्योमादि । यश्च बुद्धिमांस्तत्कर्ता स भगवानीश्वर एवेनि ॥ स्याद्ववादमंजरी, पृ० ३८. २. कः पुनरीश्वरस्य कारणत्वे न्यायः अयं न्यायोऽभिधीयते-प्रधानपरमाणुकर्माणि प्राक् प्रवृत्तेर्बुद्धिमत्कारणाधिष्ठितानि प्रवर्तन्ते, अचेतनत्वात्, वास्यादिवदिति । यथा वास्यादि बुद्धिमता लक्ष्णा अधिष्ठितमचेतनत्वात् प्रवर्तते तथा प्रधानापरमाणुकर्माणि अचेतनानि प्रवर्तन्ते । तस्मात् तान्यपि बुद्धिमत्कारणाधिष्ठितानीति । द्वादशारं नयचक्रम्, पृ० ३२४. तनुकरणभुवनसाधनाय प्रवृत्तानि अदृष्टाणुप्रधानादीनि विशिष्टचेतनधिष्ठितान्येव प्रवर्तन्ते, सम्भूयैकार्थकारित्वात्, तक्षधिष्ठितरथदारूगणवत् । तथा अचेतनत्वात् स्थित्वा प्रवृत्तेः तुर्यादिवत् । इतरथा अदृष्टाणुप्रधानादेः प्रवृत्तिफलप्रकर्षापकर्षों न स्याताम् । दृष्टौ च तौ । तयोरतो न विमर्दक्षम कारणमस्तीश्वरकामचारेरणात्रते । द्वादशारं नयचक्रं, पृ० ३२८-३२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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