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62 : प्राकृत व्याकरण
पिअरा और पिअरं रूपों की सिद्ध सूत्र - संख्या ३-४४ में की गई है।
पितृन् संस्कृत द्वितीयान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप पिअरे होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १७७ से मूल संस्कृत शब्द 'पितृ' में स्थित 'त् ' का लोप; ३ - ४७ से लोप हुए 'त के पश्चात्' शेष रहे हुए 'ऋ' के स्थान पर 'अर' आदेश की प्राप्ति; ३-१४ से प्राप्तांग पिअर में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'आगे द्वितीया बहुवचन बोधक प्रत्यय 'शस्' की प्राप्ति होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-४ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'शस्' का प्राकृत में लोप होकर पिअरे रूप सिद्ध हो जाता है।
पित्रा संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप पिअरेण होता है। इसमें 'पिअर' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त साधनिका के समान; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३ -१४ से प्राप्तांग 'पिअर' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'आगे तृतीया विभक्ति-बोधक प्रत्यय की प्राप्ति होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-६ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'टा=आ' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पिअरेण रूप सिद्ध हो जाता है।
पितृभिः संस्कृत तृतीयान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप पिअरेहिं होता है। इसमें 'पिअर' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त साधनिका के समान; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३ - १५ से प्राप्तांग 'पिअर' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर आगे तृतीया विभक्ति के बहुवचन बोधक प्रत्यय की प्राप्ति होने से 'ए' की प्राप्ति; ३-७ से तृतीया विभक्ति के बहुवचन अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'भिस्' के स्थान पर प्राकृत में 'हिं' प्रत्यय की प्राप्ति होकर पिअरेहिं रूप सिद्ध हो जाता है।
जामातरः संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन का रूप है, इसका प्राकृत रूप जामायरा होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १७७ से मूल संस्कृत शब्द - 'जामातृ' में स्थित 'त' का लोप; ३-४७ से लोप हुए 'त्' के पश्चात् शेष रहे हुए 'ऋ' के स्थान 'अर' आदेश की प्राप्ति; १ - १८० से आदेश प्राप्त 'अर' में स्थित 'अ' के स्थान पर 'य' की प्राप्ति; ३ - १२ से प्राप्तांग 'जामायर' में स्थित अन्य 'अ' के स्थान पर आगे प्रथमा विभक्ति के बहुवचन बोधक प्रत्यय की प्राप्ति होने से 'आ' की प्राप्ति और ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'जस्' का प्राकृत में लोप होकर जामायरा रूप सिद्ध हो जाता है।
मातरम् संस्कृत द्वितीयान्त एकवचन का रूप है, इसका प्राकृत रूप जामायरं होता है। इसमें 'जामायर' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त साधनिका के समान; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३-५ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'अम्=म्' के समान ही प्राकृत में भी 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १ - २३ से 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर जामायरं रूप सिद्ध हो जाता है।
जामातृन् संस्कृत द्वितीयान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप जामायरे होता है। इसमें 'जामायर' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त साधनिका के समान; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३-१४ से प्राप्तांग 'जामायर' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर ‘आगे द्वितीया विभक्ति के बहुवचन प्रत्यय की प्राप्ति होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-४ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'शस्' का प्राकृत में लोप होकर जामायरे रूप सिद्ध हो जाता है।
मात्रा संस्कृत तृतीयान्त एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप जामायरेण होता है। इसमें 'जामायर' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त साधना के समान; तत्पश्चात् सूत्र - संख्या ३ -१४ से प्राप्तांग 'जामायर' में स्थित अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'आगे तृतीया विभक्ति के एकवचन प्रत्यय की प्राप्ति होने से' 'ए' की प्राप्ति और ३-६ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में अकारान्त पुल्लिंग में संस्कृत प्रत्यय 'टा=आ' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर जामायरेण रूप सिद्ध हो जाता है।
जामातृभिः संस्कृत तृतीयान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत जामायरेहिं होता है। इसमें 'जामायर' अंग की प्राप्ति उपर्युक्त साधनिका के समान; तत्पश्चात् शेष साधनिका सूत्र - संख्या ३ - १५ तथा ३ - ७ से उपर्युक्त 'पिअरेहिं' के समान ही होकर जामायरेहिं रूप सिद्ध हो जाता है।
भ्रातरः संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप भायरा होता है। इसमें सूत्र - संख्या २- ७९ से मूल
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