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" हे पिअरं" रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३ - ३९ में की गई है। " हे पिअ" रूप की सिद्धि सूत्र - संख्या ३-३९ में की गई है।
हे कर्तः- संस्कृत संबोधन के एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप हे कत्तार ! होता है। इसमें सूत्र - संख्या २- ७९ से रेफ रूप 'र्' का लोप, २-८९ लोप हुए 'र' के पश्चात् शेष रहे हुए 'त्' को द्वित्व 'त्त' की प्राप्ति; ३ - ४५ से मूल संस्कृत शब्द 'कर्तृ' में स्थित अन्त्य 'ऋ' के स्थान पर प्राकृत में 'आर' आदेश प्राप्ति और १ - ११ से संस्कृत संबोधन के एकवचन में प्राप्त अन्त्य व्यञ्जन रूप विसर्ग का लोप होकर हे कत्तार!' सिद्ध हो जाता है । ३-४० ।।
प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 51
वाप ए ।। ३-४१॥
आमन्त्रणे सौ परे आप एत्वं वा भवति ।। हे माले। हे महिले । अज्जिए । पज्जिए। पक्षे । हे माला । इत्यादि । । आप इति किम्। हे पिउच्छा । हे माउच्छा ।। बहुलाधिकारात् क्वचिदोत्वमपि । अम्मो भणामि भणिए ।
अर्थः- ‘आप्' प्रत्यय वाले आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के प्राकृत रूपान्तर में संबोधन के एकवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'सि' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ए' की आदेश प्राप्ति होती है। जैसे :- हे माले हे माले; हे महिले - हे महिले; हे आर्थिके- (अथवा हे आर्यके!) = हे अज्जिए; हे आर्थिके = हे पज्जिए | पक्षान्तर में क्रम से ये रूप होंगे:- हे माला; हे महिला; हे अज्जिआ और हे पज्जिआ । इत्यादि ।
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प्रश्नः -'आप्' प्रत्यय वाले आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के ही संबोधन के एकवचन में 'ए' की प्राप्ति है; ऐसा उल्लेख क्यों किया गया हैं ?
उत्तर:- जो स्त्रीलिंग शब्द ' आप्' प्रत्यय से रहित होते हुए भी आकारान्त हैं; उनमें संबोधन के एकवचन में अन्त्य रूप से 'ए' की प्राप्ति नहीं होती है; इसलिये 'आप्' प्रत्ययान्त आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के सम्बन्ध में ' संबोधन के एकवचन में उपर्युक्त विधान सुनिश्चित करना पड़ा है। जैसे:- हे पितृ स्वसः ! - हे पिउच्छा ! होता है; न कि हे पिउच्छे!' हे मातृ - स्वसः ! हे माउच्छा! होता है; न कि 'हे माउच्छे;' इत्यादि ।
'बहुलं' सूत्र के अधिकार से किसी-किसी आकारान्त प्राकृत स्त्रीलिंग शब्द के संबोधन के एकवचन में अन्त्य 'आ' के स्थान पर 'ओ' की प्राप्ति होती हुई भी पाई जाती है। जैसे:- हे अम्ब भणितान् भणामि = हे अम्मो ! भणामि भणिए ! अर्थात् हे माता! मैं पढ़े हुए को पढ़ता हूं। यहां पर संस्कृत आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द 'अम्बा' के प्राकृत रूप 'अम्मा' के संबोधन के एकवचन में अन्त्य 'आ' के स्थान पर 'ओ' की प्राप्ति हो गई है; यों अन्य किसी-किसी आकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्द के संबन्ध में भी समझ लेना चाहिये।
हे माले! संस्कृत संबोधन के एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप भी हे माले! ही होता है। इसमें सूत्र - संख्या ३- ४१ से मूल प्राकृत शब्द 'माला' के संबोधन के एकवचन में अन्त्य 'आ' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति और १ - ११ से संस्कृत प्रत्यय 'स्' का प्राकृत में भी संस्कृत के समान ही लोप होकर 'हे माले!' रूप सिद्ध हो जाता है।
महिले! संस्कृत संबोधन के एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप भी हे महिले! ही होता है। इसमें भी सूत्र - संख्या ३-४१ से और १-११ से उपर्युक्त 'हे माले' के समान हो साधनिका की प्राप्ति होकर हे महिले! रूप सिद्ध हो जाता है।
हे आर्थिके ! संस्कृत संबोधन एकवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप हे अज्जिए ! होता है। इसमें सूत्र - संख्या १-८४ से 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति २ - २४ से संयुक्त व्यञ्जन 'र्य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त 'ज्' को द्वित्व ‘ज्ज' की प्राप्ति; १- १७७ से 'क्' का लोप और ३- ४१ से मूल संस्कृत शब्द 'आर्यिका' में स्थित अन्त्य 'आ' के स्थान पर संबोधन के एकवचन में संस्कृत के समान ही 'ए' की प्राप्ति होकर 'हे अज्जिए' रूप सिद्ध हो जाता है।
हे आर्यक! संस्कृत संबोधन के एकवचन का रूप है। इसका प्राकृत रूप हे अज्जिए ! होता है। इसमें सूत्र - संख्या १-८४ से 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति २ - २४ से संयुक्त व्यञ्जन 'र्य'क स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त
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