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________________ 44 : प्राकृत व्याकरण इनमें सूत्र-संख्या १–११ से मूल संस्कृत शब्द 'यत्' में स्थित अन्त्य हलन्त 'त्' का लोप; १-२४५ से 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; ३-३१ और ३-३३ से 'स्त्रीलिंग अर्थक प्रत्यय 'ङी और 'आप' की क्रम से प्राप्ति; तद्नुसार ङी और 'आ' प्रत्यय प्राप्त होने पर प्राप्त प्राकृत रूप 'ज' में स्थित अन्त्य 'अ' की इत्संज्ञा होने से लोप होकर क्रम से 'जी' और 'जा' रूप की प्राप्ति एवं ३-२७ से प्रथमा तथा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'जस्-शस्' के स्थान पर प्राकृत में 'ओ' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप जीओ और जाओ सिद्ध हो जाते हैं। ___ ताः संस्कृत स्त्रीलिंग प्रथमा द्वितीया बहुवचनान्त सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप तीओ और ताओ होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'तत्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'त्' का लोप; ३-३१ और ३-३३ से 'स्त्रीलिंग-अर्थक-प्रत्यय' 'डी' और 'आप-आ' की क्रम से प्राप्ति; तद्नुसार 'डी' और 'आ' प्रत्यय प्राप्त होने पर प्राप्त प्राकृत रूप 'त' में स्थित अन्त्य 'अ' की इत्संज्ञा होने से लोप होकर क्रम से 'ती' और 'ता' रूपों की प्राप्ति एवं ३-२७ से प्रथमा तथा द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'जस्-शस्' के स्थान पर प्राकृत में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप तीओ और ताओ सिद्ध हो जाते हैं। 'का' संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप भी 'का' ही होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'किम्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'म्' का लोप। ३-३१ से 'स्त्रीलिंग-अर्थक-प्रत्यय' 'आप आ' की प्राप्ति; तदनुसार पूर्व प्राप्त प्राकृत रूप 'कि' में स्थित अन्त्य स्वर 'इ' की इत्संज्ञा होकर लोप एवं शेष हलन्त 'क' में प्राप्त प्रत्यय 'आ' की संधि होकर 'का' रूप की प्राप्ति; ४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'सि-स्' की प्राप्ति और १-११ से अन्त्य प्राप्त हलन्त प्रत्यय रूप व्यञ्जन 'स' का लोप होकर 'का' रूप सिद्ध हो जाता है। 'या' संस्कृत प्रथमा एकवचनान्त स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'जा' होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'यत्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'त्' का लोप; १-२४५ से 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; ३-३१ से 'स्त्रीलिंग अर्थक प्रत्यय' 'आप'='आ' की प्राप्ति; तदनुसार पूर्व प्राप्त प्राकृत रूप 'ज' में स्थित अन्त्य स्वर 'अ' की इत्संज्ञा होकर लोप एवं शेष हलन्त 'ज' में प्राप्त प्रत्यय 'आ' की संधि होकर 'जा' रूप की प्राप्ति;४-४४८ से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'सि-स्' की प्राप्ति और १-११ से अन्त्य प्राप्त हलन्त प्रत्यय रूप व्यञ्जन 'स' का लोप होकर 'जा' रूप सिद्ध हो जाता है। 'सा' स्त्रीलिंग सर्वनाम रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-३३ में की गई है। 'काम् संस्कृत द्वितीयान्त एकवचन स्त्रीलिंग सर्वनाम रूप है। इसका प्राकृत रूप 'क' होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-३६ से मूल संस्कृत स्त्रीलिंग रूप 'का' में स्थित 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति और ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'अम्' के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति एवं १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'क' रूप सिद्ध हो जाता है। 'याम् संस्कृत द्वितीयान्त एकवचन स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप ‘ज होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-३६ से मूल संस्कृत स्त्रीलिंग रूप 'या' में स्थित 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति; १-२४५ से प्राप्त 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति; और शेष साधनिका उपर्युक्त के के समान ही होकर 'जं रूप सिद्ध हो जाता है। 'ताम् संस्कृत द्वितीयान्त एकवचन स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'त' होता है इसमें सूत्र-संख्या ३-३६ से मूल संस्कृत स्त्रीलिंग रूप 'ता' में स्थित 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति और शेष साधनिका उपर्युक्त 'क' के समान ही होकर 'त' रूप सिद्ध हो जाता है। _ 'कासाम्' संस्कृत षष्ठ्यन्त बहुवचन स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसका प्राकृत रूप 'काण' होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३-६ से मूल संस्कृत स्त्रीलिंग रूप 'का' के प्राकृत रूप 'का' में संस्कृत षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में प्राप्त प्रत्यय 'आम्' के संस्कृत विधानानुसार प्राप्त स्थानीय रूप 'साम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की प्राप्ति होकर __Jain E'काणं रूप सिद्ध हो जाता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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