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________________ प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 43 एलका संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप एलया होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१७७ से 'क्- के पश्चात् शेष रहे हुए 'आ' के स्थान पर या प्राप्ति होकर 'एलया रूप सिद्ध हो जाता है। गौरी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप गोरी होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१५९ से 'औ' के स्थान पर 'ओ' की प्राप्ति होकर गोरी रूप सिद्ध हो जाता है। कुमारी संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप (भी) कुमारी ही होता है। इसमें सूत्र-संख्या ४-४४८ में यथा रूप वत् स्थिति की प्राप्ति होकर कुमारी रूप सिद्ध हो जाता है।।३-३२।। किं-यत्तदोस्यमामि ॥३-३३।। "सि अम् आम्' वर्जिते स्यादौ परे एभ्यः स्त्रियां डी र्वा भवति।। कीओ। काओ। कीए। काए। कीसु। कासु। एवं। जीओ। जाओ। तीओ। ताओ। इत्यादि।। अस्य मामीति किम् का। जा। सा। कां जं । तं । काण। जाण। ताण।। अर्थः- संस्कृत सर्वनाम 'किम्', 'यत्' और 'तत्' के प्राकृत स्त्रीलिंग रूप 'का', 'जा' और 'सा अथवा ता' में प्रथमा विभक्ति के एकवचन के प्रत्यय 'सि' द्वितीया विभक्ति के एकवचन के प्रत्यय 'अम्' और षष्ठी विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय आम्' के स्थान पर प्राप्तव्य प्राकृत प्रत्ययों को छोड़ कर अन्य विभक्तियों के प्राकृत प्रत्यय प्राप्त होने पर इन आकारान्त 'का-जा-सा अथवा ता' सर्वनामों के अन्त्य 'आ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ई' की प्राप्ति होकर इनका रूप की-जी और ती' भी हो जाया करता है। इनके क्रमिक उदाहरण इस प्रकार है:-काः कीओ अथवा काओ; कया कीए अथवा काए; कासु-कीसु अथवा कासु। याः जीओ अथवा जाओ और ताः तीओ अथवा ताओ इत्यादि।। प्रश्न:-'सि', 'अम्' और 'आम्' प्रत्ययों की प्राप्ति होने पर इन आकारान्त सर्वनामों में अर्थात् 'का' 'जा' और 'सा अथवा ता' में अन्त्य 'आ' के स्थान पर 'ई' की प्राप्ति नहीं होती है; ऐसा क्यों कहा गया है? उत्तरः- चूंकि प्राकृत साहित्य में अथवा प्राकृत भाषा में इन आकारान्त सर्वनामों 'सि' 'अम्' और आम् प्रत्ययों की प्राप्त होने पर अन्त्य 'आ' की स्थित ज्यों की त्यों ही बनी रहती है; अतएव ऐसा ही विधान करना पड़ा है कि प्रथमा विभक्ति के एकवचन में, द्वितीया विभक्ति के एकवचन में और षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में इन आकारान्त सर्वनामों के अन्त्य 'आ' को 'ई की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से भी नहीं होती है। उदाहरण इस प्रकार है:- का-का; काम्=कं और कासाम्=काण; या जा; याम्=जं और यासाम्=जाण; सा-सा; ताम्=तं और तासाम्=ताण।। काः संस्कृत स्त्रीलिंग प्रथमा द्वितीया बहुवचनान्त सर्वनाम रूप है; इसके प्राकृत रूप कीओ और काओ होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-११ से मूल संस्कृत शब्द 'किम्' में स्थित अन्त्य व्यञ्जन 'म्' को लोप; ३-३१ और ३-३३ से शेष रूप 'कि' में वैकल्पिक रूप से तथा क्रम से 'स्त्रीलिंग-अर्थक-प्रत्यय' 'डी' और 'आप्=आ' की प्राप्ति; प्राप्त प्रत्यय 'डी' अथवा 'आप-आ' के पूर्वस्थ 'कि' में स्थित 'इ' की इत्संज्ञा होने से लोप होकर क्रम से 'की' और 'का' रूप की प्राप्ति; और ३-२७ से प्रथमा एवं द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'जस्-शस्' के स्थान पर प्राकृत में 'ओ' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप कीओ और काओ सिद्ध हो जाते हैं। कया संस्कृत तृतीयान्त एकवचन स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप कीए और काए होते है। इनमें 'की' और 'का' तक रूप की साधनिका उपर्युक्त रीति-अनुसार और ३-२९ से तृतीया विभक्ति के एकवचन में संस्कृत प्रत्यय 'टा' के स्थान पर प्राकृत में 'ए' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप कीए और काए सिद्ध हो जाते हैं। ___ कासु संस्कृत सप्तम्यन्त बहुवचन स्त्रीलिंग सर्वनाम का रूप है इसके प्राकृत रूप कीसु और कासु होते हैं। इनमें 'की' और 'का' तक रूप की साधनिका उपर्युक्त रीति-अनुसार और ४-४४८ से सप्तमी विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्राप्तव्य प्रत्यय 'सु' के स्थान पर प्राकृत में भी 'सु' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप कीसु और कासु सिद्ध हो जाते हैं। याः संस्कृत स्त्रीलिंग प्रथमा द्वितीया बहुवचनान्त सर्वनाम का रूप है। इसके प्राकृत रूप जीओ और जाओ होते हैं। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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