SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 42: प्राकृत व्याकरण नीलाः - संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप नीली और नीला होते है। इनमें सूत्र - संख्या ३ - ३२ से 'स्त्रीलिंग वाचक अर्थ में' अन्त्य 'आ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप 'नीली' और 'नीला' सिद्ध हो जाते हैं। काला:- संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप काली और काला होते है। इनमें सूत्र - संख्या ३ - ३२ से 'स्त्रीलिंग वाचक अर्थ में' अन्त्य 'आ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप 'काली' और 'काला' सिद्ध हो जाते हैं। हसमाना:- संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप हसमाणी और हसमाणा होते है । इनमें सूत्र - संख्या १ - २२८ से 'न' के स्थान पर 'ण' की प्राप्ति और ३-३२ से 'स्त्रीलिंग वाचक अर्थ में अन्त्य 'आ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप 'हसमाणी' और हसमाणा सिद्ध हो जाते हैं। शूर्पणखा :- संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप सुप्पणही और सुप्पणहा होते हैं। इनमें सूत्र- संख्या १ - २६० से 'श्' के स्थान पर 'स्' की प्राप्ति; १ - ८४ से दीर्घ स्वर 'ऊ' के स्थान पर ह्रस्व स्वर 'उ' की प्राप्ति; २- ७९ से र् का लोप; २-८९ से लोप हुए 'र्' के पश्चात् शेष रहे हुए 'प' को द्वित्व 'प्प' की प्राप्ति; १ - १८७ से 'ख' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति और ३-३२ से 'स्त्रीलिंग वाचक अर्थ' में अन्त्य 'आ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ई' की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप सुप्पणी और सुप्पा सिद्ध हो जाते हैं। अनया संस्कृत तृतीयान्त एकवचन रूप है। इसके प्राकृत रूप इमीए और इमाए होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या ३-७२ से 'इदम्' सर्वनाम के स्त्रीलिंग रूप 'इयम्' के स्थान पर प्राकृत में 'इमा' रूप की प्राप्ति; ३-३२ से 'स्त्रीलिंग - वाचक- अर्थ' अन्त्य 'आ' के स्थान पर वैकल्पक रूप से 'ई' की प्राप्ति और ३ - २९ से संस्कृत तृतीया विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप इमीए और इमाए सिद्ध हो जाते हैं। आसाम् संस्कृत षष्ठ्यन्त बहुवचन सर्वनाम का रूप हैं, इसके प्राकृत रूप इमीणं और इमाणं होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या ३-७२ से 'इदम्' सर्वनाम के स्त्रीलिंग रूप 'इयम्' के स्थान पर प्राकृत में 'इमा' रूप की प्राप्ति; ३-२ से 'स्त्रीलिंग - वाचक- अर्थ' में अन्त्य 'आ' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'ई' की प्राप्ति; ३-६ से संस्कृत षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में प्रातव्य प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' की प्रत्यय की आदेश प्राप्ति और १ - २७ से प्राप्त प्रत्यय 'ण' पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप इमीणं और इमाणं सिद्ध हो जाते हैं। तया संस्कृत तृतीयान्त एकवचन सर्वनाम रूप है। इसके प्राकृत रूप एईए और एआए होते हैं। इनमें सूत्र - संख्या १ - ११ मूल संस्कृत सर्वनाम 'एतत्' में स्थित अन्त्य हलन्त 'त्' का लोप; १ - १७७ से द्वितीय 'त्' का लोप; ३ - ३१ की वृत्ति से और ३-३२ से 'स्त्रीलिंग वाचक अर्थ' में क्रम से और वैकल्पिक रूप से शेष अन्त्य 'अ' के स्थान पर 'आ' एवं 'ई' की प्राप्ति और ३ - २९ से संस्कृत तृतीया विभक्ति के एकवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'टा' के स्थान पर 'ए' की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप एईए और एआए सिद्ध हो जाते हैं। आसाम् संस्कृत षष्ठ्यन्त बहुवचन सर्वनाम स्त्रीलिंग रूप है। इसके प्राकृत रूप एईणं और एआणं होते हैं। इनमें 'एई' और 'एआ' रूपों की साधनिका उपर्युक्त इसी सत्र में वर्णित रीति अनुसार; ३-६ से संस्कृत षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में प्राप्तव्य प्रत्यय 'आम्' के स्थान पर प्राकृत में 'ण' प्रत्यय की आदेश प्राप्ति और १ - २७ से प्राप्त प्रत्यय 'ण' पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर क्रम से दोनों रूप एईणं और एआणं सिद्ध; हो जाते हैं। करिणी संस्कृत स्त्रीलिंग का रूप है। इसका प्राकृत रूप (भी) करिणी ही होता है। इसमें सूत्र - संख्या ४-४४८ से यथा रूपवत् स्थिति की प्राप्ति होकर करिणी रूप सिद्ध हो जाता है। अजा संस्कृत रूप है। इसका प्राकृत रूप अया होता है। इसमें सूत्र - संख्या १ - १७७ से 'ज्' का लोप और १ - १८० से लोप हुए 'ज्' के पश्चात् शेष रहे हुए 'आ' के स्थान पर 'या' की प्राप्ति होकर अया रूप सिद्ध हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy