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________________ 20 : प्राकृत व्याकरण पेच्छ (क्रिया पद के) रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या १-२३ में की गई है ॥३-२१।। जस-शसोणों वा ॥३-२२।। इदुतः परयोर्जस्-शसोः पुंसि णो इत्यादेशो भवति। गिरिणो तरुणो रेहन्ति पेच्छ वा। पक्षे। गिरी। तरू।। पुंसीत्येवा दहीइं। महूई। जस्-शसोरिति किम्। गिरि। तरूं। इदुत इत्येवा वच्छा। वच्छे।। जस्-शसोरिति द्वित्वमिदूत इत्यनेन यथासंख्या भावार्थम्। एवमुत्तरसूत्रेऽपि।। अर्थः- प्राकृत इकारान्त उकारान्त पुल्लिंग शब्दों में प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'जस्' के स्थान पर और द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'शस्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से ‘णो' आदेश की प्राप्ति होती है। जैसे:- गिरयः अथवा तरवः राजन्ते-गिरिणो अथवा तरुणो रेहन्ति अर्थात् पर्वत श्रेणियाँ अथवा वृक्ष-समूह सुशोभित होते हैं। इस उदाहरण में संस्कृत प्रथमा बहुवचन के प्रत्यय 'जस्' के स्थान पर प्राकृत में 'णो' आदेश की प्राप्ति हुई हैं। द्वितीया विभक्ति का उदाहरण इस प्रकार है:- गिरीन् अथवा तरून् पश्य=गिरिणो अथवा तरुणो पेच्छ अर्थात् पर्वत-श्रेणियों को अथवा वृक्षों को देखो। इस उदाहरण में संस्कृत द्वितीया विभक्ति के बहुवचन के प्रत्यय 'शस्' के स्थान पर प्राकृत में ‘णो' आदेश की प्राप्ति हुई है। वैकल्पिक पक्ष होने पर गिरयः और गिरीन् का प्राकृत रूपान्तर 'गिरी' भी होता है। इसी प्रकार से तरवः और तरून् का प्राकृत रूपान्तर 'तरू' भी होता है। प्रश्नः- इकारान्त उकारान्त पुल्लिंग शब्दों में ही 'जस्' और 'शस्' के स्थान पर ‘णो' आदेश की प्राप्ति होती है; ऐसा क्यों कहा गया है? उत्तरः- इकारान्त उकारान्त शब्द नपुसंकलिंग वाले और स्त्रीलिंग वाले भी होते हैं; ऐसे शब्दों में 'जस्' और 'शस्' के स्थान पर 'णो' आदेश प्राप्ति नहीं हुआ करती है। जैसेः- दधीनि-दहीइं और मधूनि-महूई। इन नपुसंकलिंग वाले उदाहरणों में प्रथमा और द्वितीया में जस तथा 'शस्' के स्थान पर ‘णो' आदेश की प्राप्ति नहीं होकर 'ई' आदेश की प्राप्ति हुई है। स्त्रीलिंग के उदाहरण:- बुद्धयः और बुद्धी: बुद्धो और धेनवः और धेनू-धेणू। इन इकारान्त और उकारान्त स्त्रीलिंग वाले शब्दों में प्रथमा और द्वितीया में 'जस्' तथा 'शस्' के स्थान पर 'णो' आदेश की प्राप्ति नहीं होकर अन्त्य स्वर की ही आदेश रूप से दीर्घता की प्राप्ति हुई है। यों समझ लेना चाहिए कि केवल पुल्लिग इकारान्त उकारान्त शब्दों में ही 'जस्' की तथा 'शस्' के स्थान पर 'णो' आदेश की प्राप्ति वैकल्पिक रूप से हुआ करती है। प्रश्नः- 'जस्' और 'शस' ऐसा उल्लेख क्यों किया गया है। उत्तरः- इकारान्त और उकारान्त पुल्लिग शब्दों के सभी विभक्ति बहुवचनीय रूपों में से केवल प्रथमा और द्वितीया विभक्ति के बहुवचनीय रूपों में ही 'णो' आदेश प्राप्त प्रत्यय की प्राप्ति हुआ करती है; अन्य किसी भी विभक्ति के बहुवचन में 'णो' आदेश प्राप्त प्रत्यय की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसा विशेषता पूर्वक तात्पर्य प्रदर्शित करने के लिए ही 'जस' और 'शस' का नाम-निर्देश करना पड़ा है। जैसे:- गिरिम अथवा तरुम गिरि अथवा तरुं याने पहाड को अथवा वक्ष को; इन उदाहरणों में द्वितीया विभक्ति के एकवचन का प्रत्यय 'म्' प्राप्त हुआ है। न कि 'णो' आदेश प्राप्त प्रत्यय; अत एवं सूत्र में उल्लिलिखत 'जस्' और 'शस्' के उल्लेख का तात्पर्य समझ लेना चाहिये। प्रश्नः- सूत्र की वृत्ति के प्रारम्भ में 'इकारान्त' और 'उकारान्त' कहने का क्या तात्पर्य है। उत्तरः-प्राकृत में अकारान्त आदि शब्द भी होते हैं; परन्तु (इकारान्त और उकारान्त शब्दों के अतिरिक्त) ऐसे शब्दों में 'जस्' और 'शस्' के स्थान पर 'णो' आदेश प्राप्त प्रत्यय की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसा विशेष तात्पर्य प्रदर्शित करने के लिये ही वृत्ति के प्रारम्भ में 'इकारान्त' और 'उकारान्त' जैसे शब्द-विशेषों को लिखना पड़ा है। जैसे:- वृक्षाः-वच्छा और वृक्षान्=वच्छे। यह उदाहरण अकारान्तात्मक है; तथा इसमें क्रम से 'जस्' और 'शस्' की प्राप्ति हुई है; परन्तु प्राप्त प्रत्यय 'जस्' और 'शस्' के स्थान पर 'णो' आदेश प्राप्त प्रत्यय का अभाव है; तदनुसार यह ध्यान में रखना चाहिये कि _JainEdप्रा प्राकृत से अकारान्त आदि शब्दों के अतिरिक्त केवल इकारान्त और उकारान्त पुल्लिग शब्दों में ही 'जस्' तथा 'शस्' के ainelibrary.org
SR No.001943
Book TitlePrakrit Vyakaranam Part 2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2006
Total Pages434
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
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