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प्रियोदया हिन्दी व्याख्या सहित : 19 नहीं होकर क्रम से स्त्रीलिंगात्मक और नपुसंकलिंगात्मक होने से इनमें 'अवो' प्रत्यय का अभाव जानना चाहिये।
प्रश्नः- प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में 'जस्' प्रत्यय के स्थान पर ही 'अवो' आदेश-प्राप्त प्रत्यय वैकल्पिक रूप से हो जाता है; ऐसा भी क्यों कहा गया है?
उत्तरः- क्योंकि 'अवो' आदेश प्राप्त प्रत्यय केवल प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में 'जस्' प्रत्यय की है; अन्य विभक्तियों के प्रत्ययों के स्थान पर 'अवो' आदेश प्राप्ति नहीं होती है; ऐसा प्रदर्शित करने के लिये ही 'जस्' का उल्लेख करना पड़ा है। जैसे:-साधून् पश्य-साहू (अथवा) साहुणो पेच्छ। इस उदाहरण में द्वितीया-विभक्ति के बहुवचन में 'शस्' प्रत्यय के स्थान पर 'अवो' आदेश-प्राप्त प्रत्यय का अभाव प्रदर्शित हो रहा है; क्योंकि ऐसा विधान नहीं है। अतः यह प्रमाणित किया गया है कि 'अवो आदेश-प्राप्त प्रत्यय का विधान केवल प्रथमा बहुवचन में ही होता है; वह भी पुल्लिंग में ही और केवल उकारान्त में ही हो सकता है।
साधवः संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन रूप है। इसके प्राकृत रूप साहवो, साहओ, साहउ, साहू और साहुणो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१८७ में 'ध्' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; तत्पश्चात् प्रथम रूप में सूत्र-संख्या ३-२१ से संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन के प्रत्यय 'जस्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'डवो' आदेश की प्राप्ति ; प्राप्त प्रत्यय 'डवो' में 'ड्' इत्संज्ञक होने से 'साहु' में स्थित अन्त्य स्वर 'उ' की इत्संज्ञा होकर 'उ' का लोप एवं प्राप्त रूप 'साहू' में अवो' प्रत्यय की संयोजना होकर प्रथम रूप 'साहवो' सिद्ध हो जाता है। ___ द्वितीय और तृतीय रूप 'साहओ' एवं 'साहउ' में सूत्र-संख्या ३-२० से संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन के प्रत्यय 'जस्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'डओ' और 'डउ' आदेश प्राप्ति; प्राप्त प्रत्यय 'डओ' और 'डउ' में 'ड' इत्संज्ञक होने से 'साहू' में स्थित अन्त्य स्वर 'उ' की इत्संज्ञा होकर 'उ' का लोप एवं प्राप्त रूप 'साहू' में 'अओ' तथा 'अउ' प्रत्यय की संयोजना होकर द्वितीय और तृतीय रूप साहओ तथा साहउ भी क्रम से एवं वैकल्पिक रूप से सिद्ध हो जाते हैं। ___ चतुर्थ रूप 'साहू' में सूत्र-संख्या ३-४ से संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन के प्रत्यय 'जस्' की प्राप्ति होकर लोप तथा ३-१२ से प्राप्त एवं लुप्त 'जस्' प्रत्यय के कारण से अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर चतुर्थ प्रथमान्त बहुवचन रूप साह भी सिद्ध हो जाता है।
पंचम रूप 'साहूणो' में सूत्र-संख्या ३-२२ से संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन के प्रत्यय 'जस्' के स्थान पर वैकल्पिक रूप से 'णो' आदेश की प्राप्ति होकर पंचम रूप साहुणा भी सिद्ध हो जाता है। 'वच्छा' (प्रथमान्त बहुवचन) रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-४ में की गई है।
धेनवः संस्कृत प्रथमान्त बहुवचन रूप है। इसका प्राकृत रूप धेणू होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२२८ से मूल रूप 'धेनु' में स्थित 'न्' का 'ण'; ३-४ से प्रथमा विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'जस्' का लोप और ३-१२ से प्राप्त एवं लुप्त 'जस्' प्रत्यय के कारण से अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर प्रथमान्त बहुवचन रूप : रोणू सिद्ध हो जाता है।
महूइं रूप की सिद्धि सूत्र-संख्या ३-२० में की गई है।
साधून संस्कृत द्वितीयान्त रूप है। इसके प्राकृत रूप साहू और साहूणो होते हैं। इनमें सूत्र-संख्या १-१८७ से मूल रूप 'साधु' में स्थित 'ध्' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति; तत्पश्चात् प्रथम रूप में सूत्र-संख्या ३-४ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'शस्' का लोप और ३-१२ से प्राप्त एवं लुप्त 'शस्' प्रत्यय के कारण से अन्त्य हस्व स्वर 'उ' को दीर्घ स्वर 'ऊ' की प्राप्ति होकर द्वितीयान्त बहुवचन रूप 'साहू' सिद्ध हो जाता है। ___ द्वितीय रूप 'साहूणो' में सूत्र-संख्या ३-२२ से द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में संस्कृत प्रत्यय 'शस्' के स्थान पर प्राकृत में पुल्लिंग वैकल्पिक रूप से 'णो' प्रत्यय को आदेश प्राप्ति होकर द्वितीय रूप साहुणो सिद्ध हो जाता है।
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