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336 : प्राकृत व्याकरण
जानीथ तुम्हे जाणह अथवा तुम्हइं जाणह-तुम जानते हो। युष्मान् पश्यति-तुम्हे पेच्छइ अथवा तुम्हइं पेच्छइ-तुमको वह देखता है- आपको वह देखता है। इन आदेश प्राप्त पदों को पथक पथक रूप से लि
वह दखता है। इन आदेश प्राप्त पदों को पृथक पृथक रूप से लिखने का तात्पर्य यह है कि "दोनों ही पद" प्रथमा और द्वितीया विभक्ति के बहुवचन में समान रूप से होते हैं; क्रम से नहीं होते है।। यों 'यथासंख्य" रूप का अर्थात् "क्रम-रूप" का निषेध करने के लिये ही "वचन-भेद" शब्द का वृत्ति में उल्लेख किया गया है।।४-३६९।।
___टा-ङय्मा पई पइ।।४-३७०॥ अपभ्रंशे युष्मदः टा डि अम् इत्येतैः सह पई तई इत्यादेशौ भवतः।। टा।। मुई मुक्काहं वि वर-तरू फिट्टइ पत्तत्तणं न पत्ताण।। तुह पुणु छाया जइ होज्ज कहविता तेहिं पत्तेहिं।।१।। महु हिअउं तई ताए तुहुँ सवि अन्ने विनडिज्जइ।। पिअ काई करउं हउं काई तुहं मच्छे मच्छु गिलिज्जइ।। २।। डिना। पई मई बेहिं वि रण-गयहिं को जयसिरि तक्केइ।। केसहिं लेप्पिणु जम-धरिणि भण सुहु को थक्केइ।। ३।। एवं तइ।। अमा। पई मेल्लन्तिहे महु भरणु मई मेल्लन्तहो तुज्झु।। सारस जसु जो वेग्गला सो कि कृदन्तहो सज्झ।।४।। एवं तइं।।
अर्थः-अपभ्रंश भाषा में 'युष्मद्' सर्वनाम में तृतीया विभक्ति के एकवचन में 'टा' प्रत्यय का योग होने पर मूल शब्द और प्रत्यय दोनों के स्थान पर 'पई और तई ऐसे पदों की नित्य आदेश प्राप्ति होती है। इसी प्रकार से इसी 'युष्मद्' सर्वनाम में सप्तमी विभक्ति वाचक 'डि' प्रत्यय की संप्राप्ति होने पर मूल शब्द और प्रत्यय दानों के ही स्थान पर 'पई और तई ऐसे दो पदों की नित्य आदेश प्राप्ति जानना चाहिये। यही संयोग द्वितीया विभक्ति वाचक प्रत्यय 'अम्' के मिलने पर भी मूल शब्द 'युष्मद् और प्रत्यय 'अम्' दोनों का लोप होकर दोनों के स्थान पर भी 'पई और तइं पदों की आदेश प्राप्ति नित्यमेव हो जाती है। मूल सूत्र में "टा, ङि, अम्' का क्रम व्यवस्थित नहीं होकर जो अव्यवस्थित क्रम बतलाया गया है अर्थात् पहिले 'द्वितीया, तृतीया, और सप्तमी' का क्रम बतलाना चाहिये था वहाँ पर 'तृतीया, सप्तमी और द्वितीया' का बतलाया है। इसमें 'सूत्र-रचना' से संबन्धित' सिद्धांत कारण रूप से रहा हुआ है। वह कारण यों है कि सूत्र-रचना में सर्व प्रथम 'अल्पातिअल्प' अक्षरों वाला पद लिखा जाता है और बाद में क्रमिक रूप से अधिक अक्षरों वाले पद को स्थान दिया जाता है अतएव उक्त सत्र-र
दिया जाता है अतएव उक्त सूत्र-रचना सिद्धांततः सही है और इसमें कोई भी व्यतिक्रम नहीं किया गया है:
'पइं और तइं पदों के उदाहरण क्रम से तीनों विभक्तियों में यों है:(१) त्वाम्=पइं अथवा तइं-तुझ को। (२) त्वया पइं अथवा तइं-तुझ से। (३) त्वयि पइं और तइं-तुझ में; तुझ पर। वृत्ति में आई हुई गाथाओं का अनुवाद क्रम से यों हैं:संस्कृत : त्वया मुक्तानामपि वरतरो विनश्यति (फिट्टइ) न पत्रत्वं पत्राणाम्।।
तव पुनः छाया यदि भवेत् कथमपि तदा तैः पत्रेः (एव)।।१।।
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